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March-2020
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SHRUTSAGAR साचु भाषइं ते गुरु जाणि, जे पालइ ते सधु वखाणि। पालइ पणि साचुं नवि कहइ, विण समकित चारित किम लहइ सूधइ कहइ वइ दंसण सही, चारितनी तिहां भजना कही। इणइ करणि प्रवचन ओलखु, शिवपुरि जातां पुठी रखु दश पूरव लगइ श्रु(?) कहाइ, भिन्न विषइ तसु भजना थाइ। इस्यां वचन गुरु मुखि सांभली, प्रकरणसूत्र एकमति टली वली ये सुत्र सिद्धांतइ मिलइ, ते प्रकरण आगम सुं तुलइ। मिलतउं अणमिलतुं जे हुस्यइ, श्रु(श्रुत?) सांभली बहुश्रुत जाणस्यइ रागिई मति कल्पी बोलीयां, वीतराग वचने तोलीयां। असमंजस जइ को कहइ, डाहु होइ ते किम सद्हइ पणइ कारणि जिण भाषित सही, एहज मलि कांई बीजउ नहीं। तिहां छइ जीवाजीव विचार,एक एकना घणा प्रकार जे उपदेश अछइ निरवद्य, विधि वादिइं ते न लहइ सावद्य। धर्म अर्थ कामारथि सही, हिंसालव जिन वचनइ नहीं एह साखि श्री आचारंगि, अध्ययन चउथइ बोली रंगि। धर्म मूल समकित अधिकारि, ते जोई लेज्यो चतुर विचार श्री जिन छहइ काय हितकार, जगजीवन जगना आधार । सर्व त्रस-थावरना दुख लहइ, आप समाणी वेद न कहइ इसिउ कोइ जीव हणीइ नहीं, वाणि मधुरि जिणवरि कही। जे भाषइ तेहनइ अनुसारि, ते साचु उपदेश विचारि एह वचन साचां सदहइ, भवियण आगलि साचुं कहइ । तेह सहगुरुर्नु समरीस नम, पासचंद नितु करइ प्रणाम
॥ इति पासचंद्रकृता शुद्धश्रद्धान स्वाध्याय ॥
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