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श्रुतसागर
मार्च-२०२० स्तुति-स्तोत्रादि-साहित्यमा क्रमिक परिवर्तन
पुण्यविजयजी म.सा. (गतांकथी आगळ..) __भाषानी पसंदगी माटे पण आपणे जबरदस्त पलटो खाधी छे। वैदिक अने बौद्ध संस्कृतिना प्रभावने लीधे जैनधर्मने पोतानी प्रियतम प्राकृतभाषा जती करी तेना बदले संस्कृतभाषा अपनाववी पडी छे । छंद, अलंकार आदिनी पसंदगीमां पण लगभग एम ज बन्यु छे, अर्थात गाथा, वैतालीय आदि अमुक गण्या-गांठ्या छंद तेम ज अलंकारोने पसंद करनार जैन संस्कृतिने विध-विध छंद, अलंकार आदि स्वीकारवा पडया छ।'
आ बधी वात मुख्यत्वे करीने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषामां गूंथायेल स्तुति-स्तोत्र साहित्यने लक्षीने थई । छेवटे आ बधायमांथी पलटो खाई गुजराती भाषा अने जुदा जुदा प्रकारनां राग-रागिणीनी पसंदगीमां मोटे भागे सहवासी प्रजा अने संप्रदायांतरनी असर घणी ज थई छे, ए आपणे ते ते कृतिओना प्रारंभमां आपेल चाल अथवा राह बतावनार कडी उपरथी समजी शकीए छीए। गुर्जर स्तुति-साहित्यना सर्जन पछी खास परिवर्तन ए थयु के चित्रविचित्र शब्दाडंबरगर्भित स्तुति-साहित्यना निर्माण समये ओसरी गयेल भक्तिरस केटलेक अंशे पाछे नवे अवतारे आव्यो। उपसंहार
प्रस्तुत लेखमां, आपणा विशाळ स्तुति-साहित्य उपर देश, काळ, धर्म, प्रजानी संस्कृति आदिनी केटली अने केवी असर थई छे ए ढूंकमां जणाववामां आव्यु छे । ए उपरथी ए साहित्यना प्रणेताओ उपर तेते देश, काळ आदिनी असर केटला प्रमाणमां पडी हशे एनुं अनुमान आपणे दोरी शकीशुं । जगतनी महानमां महान गणाती विभूतिओ पण पोताना युगनी असरथी मुक्त रही शकती नथी। आचार्य सिद्धसेन, आचार्य मल्लवादी, आचार्य जिनभद्र, आचार्य हरिभद्र, आचार्य हेमचंद्र, श्री यशोविजयोपाध्याय आदि जेवा समर्थ पुरुषोना ग्रंथ- सूक्ष्म निरीक्षण करीशुं तो जणाशे के ए महापुरुषो पण पोताना देश-काळनी असरथी मुक्त रही शक्या नथी, एटलुं ज नहि, पण प्रसंग आवतां भिन्न भिन्न प्रकारनी लागणीओना आवेशमां पण आवी गया छ।
(संपूर्ण) ["श्री जैन धर्म प्रकाश, सुवर्ण महोत्सव विशेषांक, चैत्र, सं. १९९१]
1. इस प्रकार के मंतव्य लेखक के व्यक्तिगत हैं, इससे संपादक सहमत है ऐसा न समझे.
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