________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
March-2020
॥९॥
॥१०॥
SHRUTSAGAR पंचमि हिव गुणठाण तईय कषायनइ, उदयविरति देसति वहइ ए, पालइ श्रावकधर्म षट्कर्म बारहव्रत, प्रतिमादिक साचवइ ए, पूर्वकोडिदेसूण गुरुई थिति, इहां छठउ थानक इम लहइ ए, मुनि संजलन कषाय तीव्रउदय वसि, पणि प्रमाद परवसि रहइ ए
॥ढाल ॥ हिव गुणठाणाउ सत्तम अप्रमति यति उत्तम निरुपम धर्मध्यान निश्चल धरइ ए। तिहां संजलन कषायनइ उदय मंद संपन्नइं तनु मन्नई मुनि प्रमाद सवि परिहरइ ए क्र(कू)ड कपट सवि छंडइ ए उपसम दम गुण मंडइ ए खंडइ ए अतीचार चारित तणा ए। हिव अठम गुणठाणइ ए चडतइ सुभपरिणामइ ए पामइ ए गुण अपुव्व मुनिवर घणा ए
औपसम क्षपक सुहामणी श्रेणि आढवइ ते मुणी अतिघणी मनविसुद्धि तिहां निरमली ए। नवमइ गुणथानक जणइ क्रोध मान माया हणइ निरजणइ कर्म अनेक तिहां वली ए गुणथानक दशमउ इम शत्रु मित्र तृण मण सम अंतिम लोभ समइ अणुनी ठवइ ए। हिव गुणठाण इग्यारमइ मोहप्रकृति सवि उपसमइ तिण समइ भव पूरइ अहमिंद हुवइ ए अह परिणाम तणइ वसइ मिथ्यागुणथानक वसइ तउ तिसइ उणउ अर्द्धपुद्गल भमइ ए। जउ दशमाथी बारमइ गुणथानकि आवइ किमइ अनुक्रमइ च्यारकरम ते नीगमइ ए
॥११॥
॥१२॥
॥१३॥
॥१४॥
For Private and Personal Use Only