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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 20 मार्च-२०२० ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ ॥ दूहा ॥ छठाथी बारम लगइ, सा तजि के गुणठाण। प्रत्येकइ तिहां जाण इक, अंतरमहूरत माण सुकलध्यान चउभेय, तसु दुन्निभेय अवसाण। तेरम गुणठाणा धुरइ, पामइ केवलज्ञान ताम सुरासुर करइ तासु, उच्छव अतिसुंदर, उत्कृष्टइ देसूणकोडि-पूरवथिति जिणवर । हिव लघु पण अक्षर, उचार चउदगुणठाणइ, करि सैलेसीकरणयोग, रूंधइ सिय झाणइं च्यारकरम चूरी करीय, न्यानादिक गुणवंत । अजर अमर पद ते लहइ, जिहां छइ सुख अनंत अविरति सासादन मिथ्यात-गुण लीधइ परभवइं, जीव मरइ न लहइ संयोग, बारमइ मिश्रवइ। देव नरयगतिमांहि च्यार, गुणथानकि आदमि, तिरियमांहि पंचेव पढम नरमांहि सवि तिम संखेपइ करिमइ कह्या ए, ए गुणठाण असेष । श्रुतसागरथी जाणज्यो, एहना अरथ विशेष इम सगुणसुंदर नितु पुरंदर, रिसहजिणवर संथुण्यउ, गुणठाण चउदविचार लेसइ, तासु उपदेसइ भण्यउ। उवझायवर श्रीपुण्यसागर, सुगुरु सुपसायइ मुदा, वीनव्यउ पाठक पद्मराजइ, पूरवउ सुख संपदा ॥ इति १४ गुणठाणा स्तवन ॥ ॥१९॥ ॥२०॥ ॥२१॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525356
Book TitleShrutsagar 2020 03 Volume 06 Issue 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2020
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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