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श्रुतसागर ___18
मार्च-२०२० देसविरति पंचम ५ प्रमत्त मुनि छट्ठउ ६, । सत्तम अप्रमत्त संज्जत्त ७ अपुव्वकरणाभिध अट्ठम अनवृत नवमउ ९ दशम सुहुमसंपराय भणिज्जइ १०, इग्यारमउ उवसंत मोह ११ गुणठाण सुणिज्जइ। षीणमोह बारमउ संयोग १२ केवलगुणठाणउ १३, तेरसमउ चऊदम अयोग १४ अनुक्रमि वखाणउ आदिमगुणथी तक सरूप जिणमत इम कहियइ, कुगुरु कुदेव कुधर्म तत्व करि जिहां सद्दहियइ। मद्यपान वसि जीव जेम हित अहित न जाणइ, तेम न बूझइ तत्व वात मिथ्यात प्रमाणइ ते मिथ्यात अभव्यमांहि अन्नादि-अनंत, भव्य मझारि अनादि-संत पभणइ अरिहंत, इम अनंत पुद्गल परिट्ट पहिलइ गुणठाणइ, वसि बीजइ गुणठाण लहइ निरुपम सुह झाणइ
॥ ढाल॥ जीव अन्नादि मिथ्यात करमह उपसमि, उपसमकित समकित लहइ ए, तिहाथी पढम कषाय वसि करि, पडवज्जओ जां मिथ्यात न संग्रहइ ए। ता सासादन होइ इक समयादिक, षट् आवलिका थिति भजइ ए, हिव त्रीजउ गुणठाण मिश्र जिहां, भाव मिश्र मोह वसि संपजइ ए अंतरमहूरत सीम सिव जिण, सासणि हरिहर जिण सरिखा गिणइ ए, तिहाथी मिथ्यादृष्टि अथवा समकितदृष्टि हवइ श्रुतधर भणइ ए, अविरति समकितदृष्टि चउथउ थानकि, तसु सुरूप सुणि इण परइ ए, बीजी जेह कषाय तेह तणइ, ओदइ विरत रहित समकित धरइ ए जिणवर भाषित भाव सूषम(सूक्ष्म), बादर ते निस्संकित सरदहइ ए, करुणी तिहां संवेग उपसम निर्वेद, आस्तिकभाव हियइ वहइ ए। देव सुगुरु श्रीसंघभगति सुदृढचित्त, जिनशासन उन्नति करइ ए, स्थिति सागर तेत्रीस साधिक, एहनी उत्कृष्टी जिन उच्चरइ ए
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