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श्रुतसागर
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मार्च-२०२०
पुस्तक समीक्षा
रामप्रकाश झा पुस्तक नाम : समयसार प्रकरणम्, कर्ता: देवानंदसूरि, टीकाकार : देवानंदसूरि, अनुवादक : मुनि कर्पूरविजयजी, प्रकाशक : शेठश्री भेरुलाल कनैयालाल कोठारी रीलिजीयस ट्रस्ट 'चंदनबाळा' वालकेश्वर, मुंबई, प्रकाशन वर्ष : वि.सं. २०७४, मूल संशोधक : चतुरविजयजी, प्रेरकः : मुक्तिवल्लभसूरि, संपादक-संशोधक : वज्रसेनविजयजी, पृष्ठ : ११+१४६=१५७, भाषा : प्राकृत+संस्कृत+गुजराती, विषय : जीवादि तत्त्व, सम्यक् दर्शन तथा आराधना-विराधना फल
समयसार प्रकरण में श्री देवानंदसूरि ने जीव अजीवादि नौ तत्त्वों का विशद विवेचन प्राकृत भाषा में पद्यबद्ध रूप में प्रस्तुत किया है। इस ग्रन्थ में कुल १० अध्याय हैं। प्रारम्भ के सात अध्यायों में जीव-अजीवादि नौ तत्त्व तथा अन्त के तीन अध्यायों में ज्ञान-दर्शन-चारित्र का विवेचन व व्रतो की आराधना-विराधना का फल कहा गया है। बंधतत्त्व में पुण्य और पापतत्त्व का समावेश कर लेने से नौ की जगह सात तत्त्व कहे गए हैं। आठ प्रकार के कर्मों के बंध हेतुओं का विवरण, संवर तत्त्व के ५७ भेदों का विवरण, बारह प्रकार के तप का विवरण और मोक्षतत्त्व में एक समय में कितने सिद्ध होते हैं, इसका वर्णन किया गया है।
इस ग्रन्थ के ऊपर श्री देवानंदसूरि ने स्वयं संस्कृत भाषा में टीका की रचना की है, जिसमें ग्रन्थगत सभी तत्त्वों का विस्तार से विवेचन किया है। नौ तत्त्वों के विषय में विस्तार से ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक मुमुक्षु जीवों हेतु यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार वर्गों में मोक्ष को ही सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। समस्त दुःखपरंपरारहित, जन्म, जरा और मृत्यु से मुक्त अनन्त सुखपूर्ण मोक्ष की ही प्रशंसा शास्त्रकार करते हैं। ऐसे मोक्ष की प्राप्ति हेतु जीव को सम्यग् ज्ञान, दर्शन और चारित्र का सम्पूर्ण रूप से सेवन करना चाहिए। ___ग्रन्थ के प्रथम अध्याय में सिद्ध और संसारी दो प्रकार के जीवों की व्याख्या की गई है। गति के अनुसार भव्य, अभव्य और जातिभव्य तीन प्रकार के जीव तथा उत्पत्ति के अनुसार अंडज, पोतज आदि आठ प्रकार के जीवों का वर्णन करते हुए उन जीवों की भवस्थिति का वर्णन किया गया है। दूसरे अध्याय में पाँच प्रकार के अजीवों
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