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श्रुतसागर
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मार्च-२०२०
पद्मराज पाठक कृत
१४ गुणठाणास्तवन
डॉ. शीतलबेन शाह कृति परिचय ____१४ गुणस्थानक गर्भित आदिजिन स्तवनारूप प्रस्तुत कृतिमा उपाध्याय श्रीपुण्यसागरजीना शिष्य पाठक श्रीपद्मराजजी ए मारुगुर्जर भाषामां २१ गाथा अंतर्गत १४ गुणस्थानक- स्वरुप दर्शाव्यु छे। जीव पहेले गुणस्थानकथी चौदमे गुणस्थानके पहोंचे त्यां सुधीनो संपूर्ण विकासक्रम ढूंकमां रजू करेल छ । कर्मग्रंथना कठिन पदार्थोने ढूंकमां अने सरळताथी आ स्तवनमां समजावेल छे।
प्रथम गाथामां प्रथम तीर्थंकर श्रीऋषभदेवने प्रणाम करी मंगलाचरण करीने द्वितीय अने तृतीय गाथामां १४ गुणस्थानकना नाम आपेल छे। त्यारबाद चौदे गुणस्थानकमां रहेल जीवना लक्षणो तथा क्या गुणस्थानके केटलो समय जीव रहे छे, ते दर्शावेल छे। पहेले गुणस्थानके रहेल जीव मदिरा पीधेल जीवनी जेम सुधबुध वगरनो होय छे, जेथी कुदेव, कुगुरु अने कुधर्मनी श्रद्धा करतो अनंतपुद्गल परावर्त्तकाळ भ्रमण करे छे। बीजं अने त्रीजु गुणस्थानक उपशमश्रेणीथी पडता आवे छे, बीजा गुणस्थानके जीव १ समय अने ६ आवलिका तथा त्रीजे अंतरमुहूर्त होय छे । बीजा-अप्रत्याख्यानी कषायना उदयमां जीव चौथे गुणस्थानके सम्यक्त्वने धारण करे छ। सम, संवेग, निर्वेद, आस्तिक्य अने करुणाने धारण करे छे। आ गुणस्थानकनी स्थिति साधिक ३३ सागरोपमनी छे। पांचमां गुणठाणे पूर्वक्रोडदेशोन समय उत्कृष्ट स्थिति छे, जेमां जीव देशविरति धर्मने पाळे छे । त्यारबाद छठे गुणठाणे आवेल जीवने संज्वलन कसायनो तीव्र उदय होवाथी मुनि प्रमादने सेवे छ । सातमे गुणस्थानक वाळाने संज्वलन कसायनो उदय मंद थवाथी जीव धर्मध्यानमां स्थिर थाय छ। आठमे श्रेणी माडे छे, उपशमश्रेणि वाळो जीव नवमे क्रोध, मान, माया तथा दशमे लोभ कषायने उपशमावी अग्यारमे थी अहंनो उदय थवाथी मिथ्यात्वे आवी अनंत काळ भमे छे । जे जीव १०मे थी १२मे आवे छे, ते अनुक्रमे चार कर्मनो नाश करी केवळज्ञानने पामे छ । त्यो उत्कृष्टथी देशोनपूर्वक्रोड वर्ष रही पांच ह्रस्वाक्षर बोलाय तेटला समयमां शैलेशीकरण करी अन्य चार घातीकर्मनो नाश करी चौदमे गुणस्थानके पहोंचे छ । अनंतकाळ त्यां सुख भोगवे छ।
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