Book Title: Shrutsagar 2020 03 Volume 06 Issue 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०२० स्त्रीनी मनोदशानुं स्वरूप वर्णवे छे ज्यारे बीजु गीत पधारेला ते गुरुने पोते कई रीते विनवशे? कई रीते वहोरावशे? वळी वधावणा पण केवा करशे तेनी भावदशा आलेखतुं सुंदर काव्य छ। आम आ बन्ने गीतो तथा लीजुं स्तवन ए त्रणेय गुर्जर काव्यो कविनी सुंदर रचना छ । खास तो प्रवाहित शैली, प्रासोनी अद्भुत गोठवणी तेमज सुमधुर पदावली कविनी विद्वत्ता तरफ आपणु ध्यान दोरे छ। ___ प्रस्तुत कृतिओनुं संपादन श्रीनेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमंदिर (सुरत)ना परचुरण छुटक पाना परथी तथा आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबानी हस्तप्रत क्र. ४०७७३ना आधारे करेल छे. प्रान्ते हस्तप्रत नकल आपवा बदल उपरोक्त बन्नेय ज्ञानमंदिरना व्यवस्थापकोनो खूब खूब आभार । अजित-शान्तिजिन स्तवन ॥१॥ ॥२॥ ॥३॥ ढाल-१ शिवसुखकारण! भवनिस्तारण!, मोहनिवारण! वारणधारण!। अचिरानन्दन! जगदानन्दन!, मदभरभञ्जन! जय जनरञ्जन! तव पदकमलालीनमहीनं, त्रिभुवनमिव भवभीभरदीनम् । नतिपरम परम(?) सम्प्रतिफलितं, जातं जिनयुग! निर्वृतिकलितम् भवकृतपरिभवदु(:)स्थममुं मां, पालय मा(पा)लय साधु निभालय। प्रक्षालय समलं मम चेतो, जिनयुगलाऽमलशमजलपूरैः शुभसञ्चयकर! करुणासागर!, नागरकर्ममहामरुतीश्वर! । अजित! परैरजितेहितदाने, मां प्रति (िमा) प्रतिषेधमुखोऽभूः शान्तिः शान्तिजिनाधिप! भवता, गर्भगतेनाऽपि हि भुवि विहिता। कः साम्प्रतमीश्वरतां दधता, तत्करणे मद ऊह्यते महता ढाल-२ /भुजङ्गप्रयातच्छन्दः अहो! पुण्ययोगेन मे नेत्रयुग्मं, निरीक्ष्य प्रकाशं जिनाधीशयुग्मम् । फलाढ्यं बभूव प्रभाभास्वराङ्गं, क्वचिन् नाऽश्नुतेऽन्यत्र लेशेन रङ्गम् ॥४॥ ॥५॥ ॥६॥ For Private and Personal Use Only

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