Book Title: Shrutsagar 2020 02 Volume 06 Issue 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR February-2020 संपादकीय रामप्रकाश झा श्रुतसागर का यह नवीनतम अंक आपके करकमलों में समर्पित करते हुए हमें अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। इस अंक में योगनिष्ठ आचार्य बुद्धिसागरसूरीश्वरजी की अमृतमयी वाणी के अतिरिक्त चार अप्रकाशित कृतियों का प्रकाशन किया जा रहा है। सर्वप्रथम “गुरुवाणी" शीर्षक के अन्तर्गत आत्मा के अनन्त वर्तुल के विषय में पूज्य आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के विचार प्रस्तुत किए गए हैं। द्वितीय लेख राष्टसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से क्रमशः संकलित किया गया है, जिसमें गुरु-शिष्य के सम्बन्ध पर प्रकाश डाला गया है । अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम पूज्य गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा संपादित “माणिभद्र छंद” प्रकाशित किया जा रहा है। जिसके कर्ता मुनि मोहनसागरजी हैं। इस कृति में तपागच्छ और लोंकागच्छ के पारस्परिक संघर्ष, माणिभद्रवीर के स्वरूप तथा उनके प्रभाव से तपागच्छ की उन्नति का वर्णन किया गया है। द्वितीय कृति के रूप में पूज्य साध्वीजी श्रीविनीतयशाश्रीजी म. सा. के द्वारा सम्पादित कृति “पार्श्वनाथ विनती" प्रकाशित की जा रही है। इस कृति के कर्त्ता कवि जयनिधान ने प्रस्तुत कृति के माध्यम से पार्श्वनाथ प्रभु के गुणों की स्तवना की है। तृतीय कृति के रूप में शहरशाखा पालडी में कार्यरत श्रीमती हिरेनाबेन अजमेरा के द्वारा सम्पादित “श्री ऋषभदेवनी हमची" का प्रकाशन किया जा रहा है। धार्मिक उत्सवों में गाई जानेवाली इस गेय कृति में भगवान ऋषभदेव के जन्म से लेकर निर्वाण तक की घटनाओं का वर्णन किया गया है। चौथी कृति के रूप में शहरशाखा पालडी की कार्यकर्ती डॉ. शीतलबेन शाह के द्वारा सम्पादित “पुद्गलपरावर्त्त स्तवन” का प्रकाशन किया गया है। श्री भक्तिविजयजी द्वारा रचित इस कृति में कर्ता प्रभु से निवेदन करता है कि मैंने अनन्त पुद्गलपरावर्त्त इस संसार में परिभ्रमण किया है, अतः अब आप अपने चरणों में स्थान दें, जिससे मुझे अनन्त काल तक संसार में भटकना न पड़े। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत "स्तुति-स्तोलादि-साहित्यमा क्रमिक परिवर्तन" नामक लेख का द्वितीय अंश प्रकाशित किया जा रहा है, इस लेख में स्तुति-स्तोत्र साहित्य के क्रमिक विकास के ऊपर प्रकाश डाला गया है। गतांक से जारी “पाण्डुलिपि संरक्षण विधि” शीर्षक के अन्तर्गत ज्ञानमंदिर के पं. श्री राहुलभाई त्रिवेदी द्वारा पाण्डुलिपियों के भौतिक व रासायनिक अपघटन के ऊपर प्रकाश डाला गया है। ___पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत इस अंक में पूज्य पुण्यकीर्तिविजयजी गणि के द्वारा संपादित आवश्यकसूल की भद्रबाहुस्वामी कृत नियुक्ति के ऊपर तिलकाचार्य की लघुवृत्ति की समीक्षा प्रस्तुत की गई है। यह वृत्ति मूल, नियुक्ति व भाष्य तीनों के ऊपर संयुक्त रूप से है, जो साधु-साध्वीजी भगवन्तों तथा विद्वानों हेतु अत्यन्त उपयोगी है। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे। For Private and Personal Use Only

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