Book Title: Shrutsagar 2020 02 Volume 06 Issue 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 26 श्रुतसागर फरवरी-२०२० स्तुति-स्तोत्रादि-साहित्यमा क्रमिक परिवर्तन पुण्यविजयजी म.सा. (गतांकथी आगळ..) उपर जणावेल स्तुतिओ पछी आचार्य श्री सिद्धसेनकृत कल्याणमंदिर स्तोत्र अने आचार्य श्री मानतुंगकृत भक्तामर स्तोत्र आदि स्तोत्रो आवे छे। आ स्तोत्रोमां गौरवभर्या अने सूक्ष्म बुद्धि गम्य तत्वज्ञान- स्थान भक्तिरसे लीधुं छे अने आ जातनी अभिरुचि वधतां महाकवि श्री धनपाल, महाकवि बिल्हण, कविचक्रवर्ती श्रीपाल, गूर्जरेश्वर महाराजा श्री कुमारपाल, महामात्य श्री वस्तुपाल, आचार्य श्री जिनप्रभ, आचार्य श्री मुनिसुंदर आदिए ऋषभ पंचाशिका आदि जेवी अनेकानेक भक्ति रसभरी कृतिओ जैनदर्शनने अथवा जैन साहित्यने अर्पण करी छ। आ पछी चित्रविचित्र स्तुति-स्तोत्र-साहित्य- स्थान आवे छे। आ विभागमां सेंकडो जैनाचार्य तेम ज जैन मुनिओए फाळो आप्यो छे। तेम छतां खरतरगच्छीय आचार्य श्री जिनप्रभे विधविध भाषामय अने विधविध छंदोमय चित्रविचित्र स्तुतिस्तोत्र-साहित्यना सर्जनमां जे विशाळ फाळो आप्यो छे ए सौथी मोखरे आवे छे। आ आचार्यना जेटलुं विपुल अने विविध प्रकारचं स्तुति स्तोत्र-साहित्य कोईए सयुं नथी एम कहेवामां अत्रे जराये अतिशयोक्ति थती नथी। ___उपर्युक्त स्तुति-स्तोत्रादिने लगतुं समग्र साहित्य मोटे भागे संस्कृत भाषामां गूंथायुं छे। जोके महाकवि श्री धनपाल, आचार्य श्री जिनदत्तसूरि वगेरे विद्वानोए प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषामां केटलांक स्तुति-स्तोलोनी रचना करी छे पण तेनुं प्रमाण संस्कृत-भाषाबद्ध स्तोत्रो करतां बहु ज ओछु छ। ___ लगभग आचार्य जिनप्रभसूरिना जमाना पहेलांथी स्तुति-स्तोत्रादि साहित्यमां भाववाही भक्ति रस आणवाने बदले एनुं स्थान पांडित्यदर्शने लीधुं, अर्थात विधविध भाषा, विधविध छंदो अने विधविध यमक-श्लेष-चित्रालंकारमय कृतिओ गूंथावा लागी त्यारथी ए स्तोत्रोमां कल्याणमंदिर स्तोत्र, भक्तामर स्तोत्र, ऋषभपंचाशिका, वीतराग स्तोत्र, रत्नाकरपच्चीसी आदि स्तोत्रोना जेवी भाववाहिताए गौणरूप लीधुं अने तेनुं मुख्य स्थान लगभग शब्दाडंबरे लीधुं । आ कहेवाने अर्थ ए नथी के उपर्युक्त आलंकारिक कृतिओमां भक्तिरस नथी ज होतो; एमां भक्तिरस होय छे तो खरी ज, परंतु बाह्य शाब्दिक तेम ज आर्थिक चित्रविचित्रता शोधवा जतां आंतर भक्तिरस For Private and Personal Use Only

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