Book Title: Shrutsagar 2020 02 Volume 06 Issue 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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February-2020
॥४॥ शां०...
।५।। शां०...
॥६॥ शां०...
॥७॥ शां०...
॥८॥ शां०...
॥९॥ शां०...
SHRUTSAGAR पोयणपत्र बत्रीस संख्या वली, उपर दीजे रे सोय जि० । वर जोद्धार पुरष कर कुंतस्युं, वींधी जे वली जोय जि० एक पलासथी अन्य पलासमें, वींधी न जाइ रे कुंत जि० । तेतलामांहि वर जिनपती कहें, समय असंख्याता हुंत जि० एहवें समय असंख्याते होवे, आवलिका एकमांन जि० । दवरक वींटिइं टचिं अंगुली लही, शुद्ध ए आवीली सांन जि० वर एककोडि सडसठलख वली, दोयसहस सोल प्राहिं जि० । एवं संख्याइं आवली होवें, मुहुरत एकण मांहि जि० इम कही त्रीसमुहुर्ते अहोनिसि, अहोनिसी पन्नरें पक्ख जि० । द्वय पक्षे एक मास मांन छे, द्वयमासे रितु दक्ष जि० त्रिभुवन मांनि एक अयन कह्यो, द्वय अयने एक वर्ष जि० । छपनसहस सितरलख कोडस्युं, वरसें पूरवहर्ष जि० पूर्व असंख्याते पल्योपम, षट भेदे वली तेह जि० । दसकोडाकोडि पलिओवमें, सागरोपम कडं नेह जि० कोडाकोडवरसागर वीसथी, जातें एम कहाय जि० । उत्सर्पिणी अवसर्पिणी एकज, कालचक्र इम थाय जि० एहवें अनंते कालचक्रे होवें, एक पुद्गल परावर्त्त जि० । तेतलामांहि समकित निधी लहें, तजी मिथ्यात्व आवर्त जि० अर्द्धपुद्गलपरियट्टण ते करे, जे कह्या आठ प्रकार जि० । समकितभानु हृदय उदये थकें, लहें शिवगती परकार जि० एहवा कालमांहि हुं बहु भम्यो, विण सेवा तुझ एक जि० । अनुदिन दिजिइं तुम पय सेवना, करीय मया अतिरेक जि० वाचक वर शुभ सिस कवि नय तणो, भक्ति नमें नित पाय जि० । स्वामि स्नेहल लोचन देखीने, सेवक आनंद थाय जिणेसर
॥इति पुद्गलपरावर्त स्तवनं ॥
॥१०॥ शां०...
॥११॥ शां०...
॥१२॥ शां०...
॥१३॥ शां०...
॥१४॥ शां०...
॥१५॥ शां०...
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