SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 25 February-2020 ॥४॥ शां०... ।५।। शां०... ॥६॥ शां०... ॥७॥ शां०... ॥८॥ शां०... ॥९॥ शां०... SHRUTSAGAR पोयणपत्र बत्रीस संख्या वली, उपर दीजे रे सोय जि० । वर जोद्धार पुरष कर कुंतस्युं, वींधी जे वली जोय जि० एक पलासथी अन्य पलासमें, वींधी न जाइ रे कुंत जि० । तेतलामांहि वर जिनपती कहें, समय असंख्याता हुंत जि० एहवें समय असंख्याते होवे, आवलिका एकमांन जि० । दवरक वींटिइं टचिं अंगुली लही, शुद्ध ए आवीली सांन जि० वर एककोडि सडसठलख वली, दोयसहस सोल प्राहिं जि० । एवं संख्याइं आवली होवें, मुहुरत एकण मांहि जि० इम कही त्रीसमुहुर्ते अहोनिसि, अहोनिसी पन्नरें पक्ख जि० । द्वय पक्षे एक मास मांन छे, द्वयमासे रितु दक्ष जि० त्रिभुवन मांनि एक अयन कह्यो, द्वय अयने एक वर्ष जि० । छपनसहस सितरलख कोडस्युं, वरसें पूरवहर्ष जि० पूर्व असंख्याते पल्योपम, षट भेदे वली तेह जि० । दसकोडाकोडि पलिओवमें, सागरोपम कडं नेह जि० कोडाकोडवरसागर वीसथी, जातें एम कहाय जि० । उत्सर्पिणी अवसर्पिणी एकज, कालचक्र इम थाय जि० एहवें अनंते कालचक्रे होवें, एक पुद्गल परावर्त्त जि० । तेतलामांहि समकित निधी लहें, तजी मिथ्यात्व आवर्त जि० अर्द्धपुद्गलपरियट्टण ते करे, जे कह्या आठ प्रकार जि० । समकितभानु हृदय उदये थकें, लहें शिवगती परकार जि० एहवा कालमांहि हुं बहु भम्यो, विण सेवा तुझ एक जि० । अनुदिन दिजिइं तुम पय सेवना, करीय मया अतिरेक जि० वाचक वर शुभ सिस कवि नय तणो, भक्ति नमें नित पाय जि० । स्वामि स्नेहल लोचन देखीने, सेवक आनंद थाय जिणेसर ॥इति पुद्गलपरावर्त स्तवनं ॥ ॥१०॥ शां०... ॥११॥ शां०... ॥१२॥ शां०... ॥१३॥ शां०... ॥१४॥ शां०... ॥१५॥ शां०... For Private and Personal Use Only
SR No.525355
Book TitleShrutsagar 2020 02 Volume 06 Issue 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2020
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy