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श्रुतसागर
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फरवरी-२०२० परषदा बारइ बूझवइ परे, सुर नर नारी कोडि। श्री ऋषभदेवनी जगनी सहु हरखिइ, टाली सख[घ]ली खोडि रे ॥२७॥ हम०... गाम देश नगर पुर पाटण, महीअलि करइ विहार । भविक जीवनइ भाव धरीनइ, ऊतारइ भवपार रे
॥२८॥ हम०... वीस लाख कुमर पणइ रे, इसठि पूरव चउरासी लाख। सवि सखा लइ मान, नाभिनंदन मरुदेवी कूअर,
दिन दिननि चढतइ वानि रे ॥३०॥ हम०... समय जाणी अष्टापद शृंगि, पुहुता मननइ रंगि। तिही कणि रिषभजीइ अणसण कीधु, पाम्या सुख अभंग रे ॥३१॥ हम०... हमची गाथा सुणु नरनारी, वीस पंच खट च्यार। रिषभदेवना जे गुण गाइ, तेमा पामे भव पार रे
॥३२॥ हम०... जे नरनारी हमची गाइ, तस घरि आणंद थाइ। रोग सोग सहू दूरि जाय, मनवंछित सुख पाइरे
॥३३॥ हम०... श्री विजयसेनसूरि तपगछ नायक, महिमा मेर समान। अकबरसाही जेहनइ दिइ मान, दिन दिन चडतइ वान रे ॥३४॥ हमचडी०... विमलहर्ष शिष्य हरखि, बोलइ वचन अमृतरस तोलइ। गणि रत्नहर्ष बंधु, प्रेमविजय नाम हमची गाई अभिराम रे
॥ इति श्री हमची ऋषभदेवनी ॥
॥३५॥ हम०...
क्षतिपूर्ति गतांक (वर्ष-६, अंक-८) में पत्रांक १० पर 'कर्पट वाणिज्यमंडण चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन' के कर्ता के बारे में लिखा था कि - “विमलहर्ष उपाध्यायना शिष्य मुनिविमल अने तेमना कोई शिष्य द्वारा रचना थई होय तेम जणाय छे.” इस संदर्भ में यह संशोधन योग्य है कि विमलहर्ष के शिष्य मुनि विमल और उनके शिष्य ‘भावविजय' के द्वारा इस कृति की रचना हुई है।
-- संपादक
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