Book Title: Shrutsagar 2020 02 Volume 06 Issue 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19 SHRUTSAGAR February-2020 कर्ता अकबरप्रतिबोधक हीरविजयसूरिनी परंपराना छे। आ ज कर्ता द्वारा रचायेल तीर्थमाला स्तवनमा प्रेमविजयजीनो परिचय प्राप्त थाय छ। तपागच्छ परंपराना श्री दानसूरिना शिष्य विजय-हीरसूरि-तेमना शिष्य गच्छाधिपति श्रीविजयसेनसूरिना प्रशिष्य श्रीविमलहर्षना शिष्य श्रीप्रेमविजय प्रस्तुत कृतिना कर्ता छ । जेनुं अपर नाम कवियण पण प्राप्त थाय छे। तीर्थमाला स्तवनमां र.सं. -१६५९ प्राप्त थाय छे, ते परथी कर्ताना समयनुं अनुमान करी शकाय छे। कर्तानी आ सिवायनी अन्य कृतिओमां शनुंजय स्तवना, रावणमंदोदरी, सीतासती आदि सज्झायो तथा घणा स्तवन अने स्तुतिओ प्राप्त थाय छे । तेओए हीरविजयसूरि तथा विजयसेनसूरि उपर गीत, भास, सज्झाय, सलोको आदि रच्यां छे, जेमां तेमना गुरु प्रत्येनो अत्यंत आदरभाव प्रगट थाय छे। कर्ताए 'गणि रत्नहर्ष बंधु' तेवो उल्लेख कर्यो छे । वस्तुपाल-तेजपाल रासमां तेओ नोंधे छे के'पंडितवरभूषण रत्नहर्ष गुणखाण, तस पाय प्रसादि, कीधो ए मि रास' आम तेमनी अन्य पण केटलीक कृतिओमां रत्नहर्षनुं नाम जोवा मळे छ । बनी शके के ते तेमना वडील गुरुबंधु तथा विद्यागुरु पण होय। प्रत परिचय प्रस्तुत कृतिनुं संशोधन आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर-कोबामांथी प्राप्त थयेल एक मात्र प्रत क्रमांक-३१२२७ना आधारे करेल छ । प्रतमां ले.सं. आपेल नथी, पण प्रतमां उपयोग थयेल पडीमात्रा अने मध्यफुल्लिका परथी अनुमान करी शकाय के प्रत १८वीं शताब्दीमां लखायेल होइ शके । प्रतनुं लेखन सुंदर अने सुवाच्य अक्षरथी थयेल छे। दंड, गाथांक तथा विशेषपाठ लालस्याहीथी लखेल छे। लेखनना उपरी पंक्तिओमां कलात्मक मात्राओनो उपयोग थयेल छे तथा कृतिनुं नाम दर्शावती हुंडी पण प्राप्त थाय छे । २ पत्रमा लखायेल आ प्रतनी लंबाइ तथा पहोळाई २५/११ छे । प्रति पत्रमा पंक्ति संख्या-११ छे तथा एक पंक्तिमां अक्षर संख्या-३२ थी ३७ जेटली छ । प्रतिलेखक द्वारा गाथांक-२८ पछी २९ न आपतां सीधो ३० आपेल छ। आ कृतिना संपादनमां डॉ. शीतलबेन शाहनो सुन्दर सहयोग अने मार्गदर्शन प्राप्त थयु छे, ते बदल तेमनो खूब-खूब आभार। श्री ऋषभदेवनी हमची ॥GO॥ श्री वीर जिणेसर जग माहि वीर, तस पाए करुअ प्रणाम । जे ऋष[भ]देवनी हमची गाइ, ते पामइ शिवठाम रे ॥हमचडी। For Private and Personal Use Only

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