Book Title: Shrutsagar 2018 12 Volume 05 Issue 07
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir December-2018 SHRUTSAGAR आंखोथकी आंखो लडे वचनोविषे झेरो वहे, काती हृदयमां कारमी, वन्हि घणी प्राणो दहे; त्यां वेद साचा नहि वसे ने सत्य जातुं झट टळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. जैनागमो प्रतिकुल जे मिथ्यात्ववर्धकग्रन्थ छे, सापेक्ष वचनो वण हो सावद्य तमनो पन्थ छे; हिंसादि पापो ज्यां लख्यां ते वेद साचा छे नहीं, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. जैनागमो अविरूद्ध जे जे अन्य ग्रन्थोमा रह्यं, सापेक्षदृष्टया मान्य छे ते सद्गुरूगमथी लघु; जे पुस्तकोमां धर्म नहि मिथ्यात्व वातो बहु रही, ते मान्य नहि क्यारे थती अनुभवथकी जोशो सही. सहु देशमां सह कालमां सह जीवनं सारूं करे, एवा उपायो ते सकल वेदो ज साचा ते खरे; कल्याणनी जे योजनाओ वेद मान्या व्यवहरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. दिन साथ रात्री जग रही प्रतिपक्षता सर्वत्र छे, साचाज साथे जूठ छे ज्यां छत्री छे त्यां छत्र छे; अन्वय अने व्यतिरेकथी ए मान्यता जग संचरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. साचुं विवेक ग्राह्य छे साचा विवेके जाणशो, मनमां विवेक ज लावशो ए वेद साचो जाणशो; शुभ सत्य वैदिक तत्त्व जे ग्रहशो विवेक परवरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. शास्त्रो करोडो वांचतां माध्यस्थ्य वण कंइ ना सरे, साचो विवेक ज वेद छे ए पामतां सुखडां मळे; व्यवहार वेदो पामतां पाश्चात्य दुनिया सुधरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. 92 (क्रमशः) For Private and Personal Use Only

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