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SHRUTSAGAR
December-2018 उचित कथन के अनुचित परिणाम का एक कारण अयोग्य प्रस्तुति
वाणी के लिए कहा गया है कि‘बात बात सब एक है, बतलावन में फेर। एक बात बादल मिले, एक ही देत बिखेर’ ॥
जिस प्रकार वात अर्थात् पवन, एक ही होता है, लेकिन एक पवन से बादल इकट्ठे होते है तो दूसरे से बिखर भी जाते हैं। उसी प्रकार कईं बार बातें सब एक होती हैं, लेकिन बताने के तरीके भिन्न-भिन्न होने से कहीं बात बन जाती है तो कहीं बिगड़ जाती है। हम कई बार सही होने पर भी हमारी बातों पर ध्यान नहीं दिया जाता है, क्योंकि हमारे पास प्रस्तुति का सही तरीका नहीं होता है। कवि ने कहा है कि
‘कागा किस का धन हरे, कोयल किसकुं देत। एक बानी के कारणे ,जग अपना कर लेत' ॥
कठोरता से दुनिया जरूर जीती जा सकती है, लेकिन दिल नहीं। वाणी से संबधित शास्त्रों में कईं बातें आती है। कहाँ बोलना, कहाँ रुकना, कहाँ सुनाना व कहाँ सुनना, इन सभी बातों का विवेक जीवन में आ जाए तो जीवन उपवन बनने में देर नहीं लगती। शब्द व तीर जब तक हमारे पास हैं, तब तक हम उसके मालिक है, छूट जाने के बाद उसके ऊपर हमारा कोई नियंत्रण नहीं रहता है, अतः सोच-विचारकर व तोल-तोलकर बोलने की बातें ग्रंथों में पाई जाती हैं। कितनी भी अच्छी बात क्यूँ न हो, योग्य समय व योग्य स्थान पर ही शोभा देती है। कहा गया है कि
सबद रतन मुख कोटडी, चुप कर दीजे ताल। घराक होय तो खोलिए, बानी बचन रसाल ॥
शब्द रूपी रत्न को मुख रूपी डब्बी में मौन का ताला लगाकर रखना चाहिए और अच्छे ग्राहक मिले तभी खोलना चाहिए। गलत व्यक्ति के सामने कही गई अच्छी बात भी गलत परिणाम देती है। शक्कर भले ही अच्छी हो, लेकिन गधे के लिए वह ज़हर है। दूध भले ही पौष्टिक हो, लेकिन सर्प के लिए विषवृद्धि का कारण है। इस विषय में सुगृही पक्षी व वानर का दृष्टांत भी प्रसिद्ध है, यथा
उपदेशो न दातव्यो यादृशे तादृशे जने। पश्य मूर्ख वानरेण सुगृही निर्गृही कृता॥ कईं बार कुछ परिस्थितियों में अपनी सही बात को गौण रखकर सामने वाले
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