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श्रुतसागर
दिसम्बर-२०१८ की गलत बात को भी मान लेना पड़ता है। जैसे कोई विद्वान मार्ग पर जा रहा था । सामने एक मूर्ख ग्वाला मिल गया। उसके हाथ में लाठी था। वह लटू लेकर बोला'बोल ! मेरे और तेरे में विद्वान कौन?' वह विद्वान समझ गया कि यहाँ सही बोलने में लठ्ठ ही पड़ने वाला है, अतः वह बोला -
तू ज्ञानी का ज्ञानी और मैं अज्ञानी का दास। तूने उठाई लाठी और मैंने उठाई घास ॥
ऐसा उदाहरण कपिल केवली एवं वृद्धवादीसूरि हेतु भी आता है। अधीर एवं विद्यागर्वित सिद्धसेन ब्राह्मण ने रास्ते में ही वृद्धवादीसूरि को रोका और वाद करने लगा। न्याय हेतु वहाँ उपस्थित ग्वाले जैसे लोगों को नियुक्त किया। आचार्य श्री ने विद्वता की बात न करके ग्वालों वाली बात की और जीत गये । सिद्धसेन को धैर्य आने पर पुनः राजसभा में वाद करके जीता और शिष्य बनाया । कपिल केवली को ५०० चोरों ने घेर लिया और वहाँ उन्होंने उनकी भाषा में रास-गरबा करते-करते प्रतिबोधित किया। समय, स्थान, जीव विशेष व प्रसंगानुरूप किया गया वाणीव्यवहार ही अपेक्षित परिणाम दे पाता है। मौनम् सर्वार्थ साधनम्
कई बार कार्य बोलने से होता है तो कई बार मौन रहने से होता है। एक बैलगाड़ी के नीचे बच्चा आ गया और मर गया। गाड़ी वाले को न्यायालय में खड़ा किया गया, लेकिन वह देर तक मौन ही रहा, तब बच्चे की माँ ने कहा कि उस दिन तो जोर-जोर से बोल रहा था कि 'हटो, हटो, गाड़ी आ रही है, अब क्या हो गया। बस, इस वाक्य से सिद्ध हो गया कि इसने तो चेतावनी दी थी, लेकिन माँ की लापरवाही के कारण हादसा हुआ है। एक छोटे-से मौन ने गाड़ी वाले को बचा लिया। यह ताकत है मौन की।
इस विषय में समयसुंदरजी ने कल्पलता टीका में गंगा तेली का एक सुंदर दृष्टांत दिया है, जो सुप्रसिद्ध है। राजा भोज ने एक अजेय विद्वान के सामने गंगा तेली को खड़ा कर दिया। बिना कुछ बोले मात्र इशारों में ही वाद हुआ। विद्वान ने जगत्कर्ता एक शिव के प्रतीक के रूप में एक ऊँगुली दिखाई और गंगा ने दो ऊँगलियाँ दिखाईं। विद्वान समझा कि शिव और शक्ति दो हैं। विद्वान ने पाँच इन्द्रियों के लिये पंजा दिखाया और गंगा ने मुट्ठी दिखाई। विद्वान समझा कि पाँच इन्द्रियों को काबू करना ही हितावह है। इस प्रकार विद्वान हार गया और मूर्ख जीत गया। गंगा के लिये विद्वान की एक ऊँगुली का अर्थ था तेरी एक आँख फोड़ दूंगा अतः गंगा ने उनकी दोनों आँखें
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