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SHRUTSAGAR
December-2018 टीकायुक्त अर्हन्नामसहस्रकम् प्रकाशित किया गया है, उसके बाद कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य द्वारा रचित अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, श्री विनयविजयजी द्वारा रचित जिनसहस्रनाम स्तोत्र, उपाध्याय श्री यशोविजयजी द्वारा रचित सिद्धसहस्रनामकोश, आचार्य श्री कल्याणसागरसूरिजी द्वारा रचित श्री पार्श्वनाथ सहस्रनाम स्तोत्र, अज्ञातकर्तृक श्री पार्श्वनाथ सहस्रनाम स्तोत्र, दिगम्बर आचार्य श्री जिनसेनाचार्य द्वारा रचित जिनसहस्रनाम स्तोत्र, पंडित आशाधर द्वारा रचित जिनसहस्रनाम स्तवन, श्री जीवहर्षगणि द्वारा रचित जिनसहस्रनाम स्तोत्र, पंडित बनारसीदास द्वारा रचित भाषासहस्रनाम आदि नौ कृतियाँ प्रकाशित की गई हैं। इसके अतिरिक्त वर्धमान शक्रस्तव, लघुजिनसहस्रनाम, सिद्धसहस्रनाम स्तोत्र आदि प्रकाशित किए गए हैं। कहीं-कहीं संस्कृत स्तोत्रों के गुजराती में अनुवाद भी दिए गए हैं। जिससे वाचकवर्ग को उन स्तोत्रों के अर्थ का भी पता चल सके।
प्रस्तुत ग्रंथ एक अति उपयोगी ग्रन्थ है, क्योंकि इसमें परमात्मा के विविध नामों का उल्लेख, उनका महत्त्व तथा नामस्मरण के प्रभावों का वर्णन किया गया है। परमात्मा का आलंबन लेकर जितने जीव सिद्धगति को प्राप्त करते हैं, उससे कई गुणा अधिक जीव परमात्मा के नामस्मरण और प्रतिमा का आलंबन लेकर परमपद को प्राप्त करते हैं। नामस्मरण से एक अद्भुत लाभ यह प्राप्त होता है कि परमात्मा सदेह विद्यमान हों या न हों, किसी भी क्षेत्र में हों अथवा किसी भी परिस्थिति में हों, उनका नामस्मरण और उनकी प्रतिमा का आलंबन जीवों का उद्धार करने में समर्थ होता है। यही कारण है कि जितना माहात्म्य भावनिक्षेप में विराजमान परमात्मा का है, उससे अधिक माहात्म्य नाम और स्थापना निक्षेप में विराजमान परमात्मा का है। परमात्मा के नामों का स्मरण करना, उनकी स्तवना करनी, स्तुति करनी, पूजन करना, वंदन करना, बारम्बार उन नामों का ध्यान करना ये सभी नामस्मरण के ही प्रकार हैं।
पूज्य मुनि श्री धर्मरत्नविजयजी ने इस ग्रन्थ का संशोधन व सम्पादन कर लोकोपयोगी बनाने का जो अनुग्रह किया है, वह सराहनीय एवं स्तुत्य कार्य है।
भविष्य में भी जिनशासन की उन्नति एवं प्रभुभक्तिमार्ग में उपयोगी ग्रन्थों के प्रकाशन में इनका अनुपम योगदान प्राप्त होता रहेगा, ऐसी प्रार्थना करता हूँ।
पूज्य मुनिश्रीजी के इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन।
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