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श्रुतसागर
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दिसम्बर-२०१८
पुस्तक समीक्षा
रामप्रकाश झा
पुस्तक नाम संपादक संशोधक
प्रकाशक
अर्हन्नामसहस्रकम् मुनि धर्मरत्नविजयजी मुनि धर्मरत्नविजयजी मानवकल्याण संस्थान, अहमदाबाद विक्रम २०७३ २५०/संस्कृत एवं गुजराती
प्रकाशन वर्ष
मूल्य
भाषा
परमात्मा के नामस्मरण में अद्भुत शक्ति होती है, जिसके द्वारा जीवों का आध्यात्मिक विकास सरलतापूर्वक हो सकता है। जब भी परमात्मा के नामों का स्मरण किया जाता है, तब उस नाम में स्थित गुण आँखों के समक्ष तैर जाते हैं। अपने दोषों का स्मरण करते हुए उन गुणों को प्राप्त करने की अभिलाषा तीव्र बन जाती है
और इसके कारण जीव उस परमात्मा की शरणागति स्वीकार करता है। नाम स्मरण में यदि मन, वचन और काया एकाग्र हो जाए तो ध्यानयोग की अवस्था प्राप्त होती है। यह अवस्था प्राप्त होते ही आत्मविषयक भ्रान्तियों का निराकरण हो जाता है और श्रद्धा दृढ बनती है। उसके बाद पौद्गलिक भावों में राग-द्वेष के परिणाम मन्द पड़ जाते हैं। इस प्रकार जीव को राग-द्वेषरहित अवस्था प्राप्त होती है। ।
परमात्मा के नामस्मरण को ध्यान में रखकर अनेक कृतियों की रचना की गई हैं, जिनमें प्रभु के १०८ अथवा १००८ नामों की महिमा का वर्णन किया गया है। इन कृतियों की विशेषता यह है कि परमात्मा के मात्र नाम न होकर उनकी विशिष्ट महिमा को दर्शानेवाले विशेषणों के द्वारा स्तवना की गई है। प्रस्तुत ग्रन्थ में १००८ नामों वाली कृतियों का संग्रहकर उन्हें प्रकाशित किया गया है। इनमें से कुछ कृतियाँ तो प्रकाशित हैं परन्तु कुछ अप्रकाशित भी हैं। उन कृतियों को यथासम्भव संशुद्ध कर प्रकाशित किया गया है। इस ग्रन्थ में सर्वप्रथम उपाध्याय देवविजयजी गणि द्वारा रचित स्वोपज्ञ
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