Book Title: Shrutsagar 2018 12 Volume 05 Issue 07
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर दिसम्बर-२०१८ में प्राप्त श्रीद्वीप, द्वीप एवं द्वीपबंदर जैसे नाम दीव बंदर के ही पर्यायवाची होना संभव है। प्रत का लेखन समय वि.सं. १६८० चैत्र कृष्ण पक्ष १३ सोमवार है। प्रत की स्थिति श्रेष्ठ है। प्रत के अन्तर्गत विशिष्ट पाठों को लाल रंग से highlight किया गया है। अंक व दंड को लाल स्याही से लिखा गया है व पत्रांक स्थानों में सादा रेखा चित्र बने हुए हैं। पन्नों के बीच अक्षरमय वापीयुक्त फुल्लिकाएँ बनाई हुई हैं। प्रत के प्रत्येक पन्ने की ऊपरी पंक्तियों में की गई कलात्मक मात्राएँ प्रत की शोभा में चार चाँद लगा देती हैं। प्रत लेखन काल के बाद कर्ता का विद्यमान काल कम से कम ५ वर्ष का होने के प्रमाण मिलते हैं। यह प्रत रचना के निकटतम समय में लिखित होने से आदर्श प्रत के रूप में मानी जा सकती है। प्रत में प्रतिलेखक का उल्लेख अनुपलब्ध है, परन्तु प्रत के प्रारंभ में मंगल के रूप में प्रतिलेखक द्वारा कर्ता के गुरु को नमस्कार किया गया है यथा- 'पंडित श्री कल्याणकुशल गणि सद्गुरुचरणकमलेभ्यो नमः' इससे यह संभवित है कि यह प्रत कर्ता ने स्वयं लिखवाया हो या उनके शिष्य ने लिखा हो । अंत में प्रतिलेखक द्वारा कुछ गूढ शब्द जैसे लिखे गए हैं यथा- “णंबिनग्रीक्षझाहुघठकिख्य। सपिठ सनि शुक छेत” | इसमें क्या कहना चाहते हैं, वह सुज्ञजन संशोधन करके स्पष्ट करने का कष्ट करें। गणि दयाकुशल कृत मौनएकादशी १५० जिनकल्याणक स्तवन GO॥ पंडित श्री कल्याणकुशल गणि सद्गुरुचरणकमलेभ्यो नमः॥ ॥चेतन चेतन प्राणीआ ए ढाल ॥ शारद पय प्रणमी करी, सहि गुरु सुपसाइ। मौन एकादशी व्रत भणुं, जेहथी सुख थाई भवि भावि आराधीइ, कल्याणक दिन एह। अढीद्वीपमां डोढसो, जिन जपीइ तेह ॥भO॥आंकणी॥ हुआ संप्रति जे हुसिइं, भरत ऐरवत मांहिं । त्रिण्णि कल्याणक एणइ दिनिइं, कहुं मनि उच्छाहिं भवि० ॥२॥ ॥१॥ For Private and Personal Use Only

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