Book Title: Shrutsagar 2018 12 Volume 05 Issue 07
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20 श्रुतसागर दिसम्बर-२०१८ के तीन काल के जिनेश्वरों का पदक्रम सह नाम स्मरण किया गया है। उसमें खंडक्रमजंबुद्वीप, धातकीखंड व पुष्करावर्तद्वीप है। क्षेत्रक्रम- भरत व ऐरवत है। काल क्रमअतीत, वर्तमान व अनागत है। जिनेश्वर नामों की संख्या ९० प्राप्त होती है। उनमें से किसी का १, किसी के २, किसी के ३ आदि कल्याणक होने के कारण कुल १५० कल्याणक होते हैं। इस कृति का अध्ययन करने से विविध क्षेत्रों के तीनों चौबीसियों के उपरोक्त जिनेश्वरों का मंगल स्मरण हो जाता है। कर्ता ने कृति के अंत में भी आराधना हेतु विधि, फलश्रुति व संदेश देते हुए कहा कि अढाइद्वीपि मझारि, दश क्षेत्रे जिन ए धुंणुं ए। जिम लहो परिमाणंद, मौनधर गुणणुं गणो ए॥४३॥ पोसह करो अहोरत्त, वरस एकादशि लगि सही ए। पछइ ऊझवणुं भावि, करीइ विधि एणी परि कहीइ ए॥४४॥ लही मानव भव सार, उत्तमकुल पामी करी ए। सुद्ध धरम समकित्त, आराधो उल्हट धरीइ ए॥४५॥ ए तपथी बहुमान रिद्धि वृद्धि सुख संपदा ए। पामइ प्रगडु न्यान, उदय हुइ अधिको सदा ए॥४६॥ मौन एकादशि तप निज मन रसि, वशि करी करो जिन ध्यान। त्रिकरण सुद्धिइं उत्तम बुद्धिइं जिम दिइ शिववधू मान। जिससे परमानंद की प्राप्ति होती है ऐसे ढाईद्वीप के १० क्षेत्र के जिनेश्वरों के जाप मौन पूर्वक करने चाहिए। मनुष्य जन्म एवं उत्तमकुल प्राप्त करके तप सह, मन को वश में रखकर, जिनेश्वरों के ध्यान के साथ, त्रिकरण शुद्धि, उत्तम बुद्धि से, उल्लास व समकित शुद्धि युक्त मौन एकादशी की आराधना अहोरात्रि पौषध के साथ ११ वर्ष तक करनी चाहिए। आराधना के बाद उद्यापन भी करना चाहिए। इस तप के प्रभाव से यश, ऋद्धि, सुख संपदा, प्रगट ज्ञान व शिववधू की प्राप्ति होती है। कृति में रचना वर्ष का विवरण अनुपलब्ध है। प्रत का लेखन वि.सं. १६८० होने से रचना उससे पूर्व होनी स्वाभाविक है। कर्ता की विद्यमानता के बारे में अंतिम वर्ष वि.सं. १६८५ के प्रमाण मिलते हैं । एक संभावना यह भी है कि जो लेखन वर्ष है, वही उसका रचना वर्ष भी हो। कर्ता परिचय: इस कृति के कर्ता तपागच्छीय श्रीकल्याणकुशलजी के शिष्य गणि दयाकुशल For Private and Personal Use Only

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