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December-2018
SHRUTSAGAR सोळमा शतकनी गुजराती भाषा
मधुसूदन चिमनलाल मोदी (गतांकथी आगळ...) इजिस्नि [Notes. P. १४ $ १४९]
ईणि प्रकारि तेह उत्तम नरनि विषइ। उत्तमपणू तेह उपरि प्रसाद पामुं ॥ ये अमरहिं निर्मलपणूं लाभमंत पंथा मार्ग सीखवि कहिएक-रहिन्मस्कार ॥ एह भुवनमाहिं। ये इहलोकीआ अनि परलोकीआ रहिं। एह कारण तु सतावनर्मि वरसि ॥ प्रगट बुद्धिये किल सत्य निर्मलतरि पाछलि सरीरिं वडपण हुइ॥
श्री. नरसिंहराव दीवेटिया (Gujarati Language and Literature Vol. II P. 51) आ ग्रन्थना फकरामांनी नोंध लेतां कहे छे “The language of these extracts is obviously of a period before or after 1500 V. S. श्री. दिवेटियाना अवतरणमां स्वरयुग्म अउनो ओ थयानो दाखलो छे. (भलउने स्थाने भलो) आ हाथप्रतनी लखाया साल मालुम नथी पण भाषा पंदरमा सैकानी होइ लखाण सोळमाना अंतभागनुं स्वरयुग्म अउ=पामुं, निर्मलपणूं; स्वरयुग्म अइ-प्रकारि, नरनि, अह्नरहिं, सीखवि (/ सीख व. का. ३ ए. ) हजु व. का. ३. ए. हजु स्वरयुग्म अइनो ए मांथी नथी। ____ आज काळनां लखाणमां सोमदेवनी उपदेशमालानी कथाओ, योगशास्त्रनी कथाओनो समास करी शकाय। आ लखाणोनी हाथप्रत पण जो ते काळनी एटले पंदरमा सैकाना अंतनी होय तो क्रियापदना रूपमा अइनो इ अने नामनां विभक्ति रूपमां अइनो इ तेमज ए देखा दे छे । अउनो उ तो छ ज पण ओ य ठीक प्रमाणमां देखा दे छ । (दा.त. प्राचीन गुर्जर गद्य संदर्भ. पा. ७४ गजसुकुमालकथा). पृथ्वीचन्द्र चरित्र सं. १४७८मां तो भाषानूं जूनुं स्वरूप जळवाइ रहेलुं छे।
इजिस्निमांनो सोळमानो अंतनो अने सत्तरमा सैकाना शरूआतनो भाग P. 14 Notes $ 177 थी मने लागे छे; कारण के रहिनो प्रयोग अदृश्य थाय छे अने तेनी जगा नि के ने (=जूनुं नइं) ले छे । स्वरयुग्म अइना ए अने इना सहप्रयोग दीठामां आवे छे । दा. त.
इजिस्त्रि [Page. १९ Notes $ १८०] जे तेवारि पुण्य करि प्रकटताइ ते साथे मली राज्यपणुं छे निश्चि अंते तेनि
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