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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 27 December-2018 SHRUTSAGAR सोळमा शतकनी गुजराती भाषा मधुसूदन चिमनलाल मोदी (गतांकथी आगळ...) इजिस्नि [Notes. P. १४ $ १४९] ईणि प्रकारि तेह उत्तम नरनि विषइ। उत्तमपणू तेह उपरि प्रसाद पामुं ॥ ये अमरहिं निर्मलपणूं लाभमंत पंथा मार्ग सीखवि कहिएक-रहिन्मस्कार ॥ एह भुवनमाहिं। ये इहलोकीआ अनि परलोकीआ रहिं। एह कारण तु सतावनर्मि वरसि ॥ प्रगट बुद्धिये किल सत्य निर्मलतरि पाछलि सरीरिं वडपण हुइ॥ श्री. नरसिंहराव दीवेटिया (Gujarati Language and Literature Vol. II P. 51) आ ग्रन्थना फकरामांनी नोंध लेतां कहे छे “The language of these extracts is obviously of a period before or after 1500 V. S. श्री. दिवेटियाना अवतरणमां स्वरयुग्म अउनो ओ थयानो दाखलो छे. (भलउने स्थाने भलो) आ हाथप्रतनी लखाया साल मालुम नथी पण भाषा पंदरमा सैकानी होइ लखाण सोळमाना अंतभागनुं स्वरयुग्म अउ=पामुं, निर्मलपणूं; स्वरयुग्म अइ-प्रकारि, नरनि, अह्नरहिं, सीखवि (/ सीख व. का. ३ ए. ) हजु व. का. ३. ए. हजु स्वरयुग्म अइनो ए मांथी नथी। ____ आज काळनां लखाणमां सोमदेवनी उपदेशमालानी कथाओ, योगशास्त्रनी कथाओनो समास करी शकाय। आ लखाणोनी हाथप्रत पण जो ते काळनी एटले पंदरमा सैकाना अंतनी होय तो क्रियापदना रूपमा अइनो इ अने नामनां विभक्ति रूपमां अइनो इ तेमज ए देखा दे छे । अउनो उ तो छ ज पण ओ य ठीक प्रमाणमां देखा दे छ । (दा.त. प्राचीन गुर्जर गद्य संदर्भ. पा. ७४ गजसुकुमालकथा). पृथ्वीचन्द्र चरित्र सं. १४७८मां तो भाषानूं जूनुं स्वरूप जळवाइ रहेलुं छे। इजिस्निमांनो सोळमानो अंतनो अने सत्तरमा सैकाना शरूआतनो भाग P. 14 Notes $ 177 थी मने लागे छे; कारण के रहिनो प्रयोग अदृश्य थाय छे अने तेनी जगा नि के ने (=जूनुं नइं) ले छे । स्वरयुग्म अइना ए अने इना सहप्रयोग दीठामां आवे छे । दा. त. इजिस्त्रि [Page. १९ Notes $ १८०] जे तेवारि पुण्य करि प्रकटताइ ते साथे मली राज्यपणुं छे निश्चि अंते तेनि For Private and Personal Use Only
SR No.525341
Book TitleShrutsagar 2018 12 Volume 05 Issue 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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