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श्रुतसागर
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॥४१॥
॥४२॥
॥४३॥
दिसम्बर-२०१८ विसोम त्रिण्णि पदि कहीइ, आरणथी सुख लहीइ। डोढसो जिनवर नाम, जपतां शिवसुख ठाम
॥राग धन्यासी। अढाइद्वीप मझारि, ए ढाल ॥ भाविइं भविअण जेह, ए व्रत मनसुद्धिइं धरइ ए। निश्चइं सुख लहइ तेह, छेहलइ सिद्धिवधू वरइ ए अढाइद्वीपि मझारि, दश क्षेत्रे जिन ए थुगुं ए। जिम लहो परिमाणंद, मौनधर गुणणुं गणो ए पोसह करो अहोरत्त, वरस एकादशि लगि सही ए। पछइ ऊझवणुं भावि, करीइ विधि एणी परि कहीइ ए
॥४४॥ लही मानव भव सार, उत्तमकुल पामी करी ए। सुद्ध धरम समकित्त, आराधो उल्हट धरीइ ए ए तपथी बहुमान रिद्धि वृद्धि सुख संपदा ए। पामइ प्रगडुं न्यान, उदय हुइ अधिको सदा ए
॥ कलश॥ मौन एकादशि तप निज मन रसि, वशि करी करो जिन ध्यान । त्रिकरण सुद्धिइं उत्तम बुद्धिई, जिम दिइ शिववधू मान । कल्याणकुशल पंडित गुणमंडित, तपगछि शोह चढावइ । दयाकुशल कहइ पुण्य पसाइं, मनवंछित सुख पावइ
॥४७॥
॥४५॥
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इति श्रीमौनएकादशी दिने डोढसो जिन कल्याणक स्तोत्रं संपूर्णमिति श्रेयः॥ संवत् १६८० वर्षे चैत्र वदि १३ सोमे। श्रीद्वीप मध्ये लिखितं॥ णंबिनग्रीक्षझाहुघठकिख्य। सपिठ सनि शुक छेत ॥ परोपकाराय॥
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