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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर दिसम्बर-२०१८ विषि ते कालने विषे राज्य संपूर्ण होइ ॥ जे वारे सवलो टोलु बेहेस्ती रूबाआंननु अंन नाश पामतु थकु रुडि परकारि आवशे निश्चि आत्मनी फरिथि देहे धरसे ॥ तिहेने विप्रसिद्धि जे तमो तिणीए महाज्ञानी प्ररोहि कितां अंकोर रोपेउ निश्चि दिननि प्रकति संपूर्ण हशि अत्थे ति कालनि विषि ॥ __ऊपरना भागमां लखाणमां स्वरयुग्म अइनो ए अने इनो सहप्रयोग अने अउनो ओ अने उनो सहप्रयोग मालुम पडे छे। आना टेकामां लेखपद्धति (गा. ओ. सी. नं. १९ पा. ७१-७२.)मांना क दस्तावेजनी भाषा टांकु छु । आ दस्तेवेज लखायो: संवत् १६१८ वरषे ज्येष्ठ वदि ६ रवउ देह नटपद्रस्तानमाहा=सं. १६१८ जेठ वद छठ अने रविवार; नडिआदमां आ दस्तावेज सत्तरमा सैकानी शरूआतनो छे एटले इजिस्निना उपला फकराने मळती तेनी भाषा होय तो नवाइ नथी। तलावि पाणी सहीआरे नही। तथा ऊघराणी जनी पूजमनी छि तो जिम आवि तिम अरधे अरधि लि। बिजू भोम दो. जनावाली राणा वणा एमना पासे छे। बीजे पासे पडोस दवे नाग जोगीदासना पासे छे । बीजू भोम नवा गाम माहेली तलीआनी छे ते काही भरमपोरे आपी। बाकी छे ते अजमाल छे । उघराणी तथा भोम मजम छे। बाकी कोई ए वरा केहीने कसू सरसमंध नही। ए वहेचण दो०३ विसीने समजावा जोईने भाग जोए मलकत आवी ते मलकत तेहनी। ए लखू फेरवे ते तेहेना बापनो जणो नही। आज सूधी कोईने केईसू कसो अलाखो नही। तलाव पाणी सहीआरो नही। ए लखू परमाण। ऊपरना अवतरणमां देखाई आवशे के स्वरयुग्म अइ इ अने ए वपराया छे। अउ ऊ अने ओ थएला जणाय छे। जूना अनुषंगी शब्दो (Post-positions) नो पूरेपूरो अभाव छ । आथी सिद्ध थाय छे के आ भाषा ईजिस्निना ऊपरना बीजा अवतरणनी भाषा साथे समान छ। ऊपरना दस्तावेज पहेलांना दस्तावेज अनुक्रमे शाके १४६५=सं. १५९९ अने सं. १५८३ना छे; जेमां सं. १६१८ना दस्तावेजनी विशिष्टताओ देखाती नथी। आ दस्तावेजनां अवतरण अत्रे प्रस्तुत छे एटले आपुंछु: ग्रहणकपत्रम् । (लेखपद्धति गा. ओ. सि.) सं.१५९९: ए घर पडई आखडई राजकि दैवकि लागई ते तथा नलियाखोटि घणी छोडवतां सर्व वरती आपई। संचरामणी वसनाहारनी। जां लगइ टंका आठ सहनि चिडोत्तर आपइ तिहारइं छुटइ । तां लगइ भाइ ३ पदमा रंगा उदयकरण वसइ वासइ।++++ मोदी नारायमदास तापीदासे घरग्रहणे ++ रङ्गा कह्नइ मूक्यां। स्वरयुग्म अइ=अई, अइ क्रियापदमां; विभक्तिप्रत्ययोमा त्रीजी अने सातमीमां ए, इ, अइस्वरयुग्म अउ ऊंउ; ओ नथी। जूना अनूषंगी शब्दो अदृश्य छे । जोडणीनी वैकल्पिकतानुं एक ज दृष्टांत आपुं; नाराइणदास; नारायणदास नाराणदास-कदाच For Private and Personal Use Only
SR No.525341
Book TitleShrutsagar 2018 12 Volume 05 Issue 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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