Book Title: Shrutsagar 2018 12 Volume 05 Issue 07
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२८॥ ॥३०॥ SHRUTSAGAR December-2018 धन तणी कोडि धवल हिं वास, वारु घरि घोडा तणी लासि८,, जगिजणणि वसइ मनमाहिं जास, जस सचराचरि१ फिरइ तास ॥२७॥ तुझ सेवक नवि दीसइ उदास, भोगवइ भूमि गिरूआ गरास ताहरा गुण जे जपइ भास ३, छूटइ छइल्ल ते पाप-पास एतलो अंब ताहरो वीसास५, तइं मान्यो ते नर नहीं निरास, तुं करइ विघन केरो विणास, ओपाइ मति नव नव विलास ॥२९॥ पंचंगुलि सेवइ सावधान, ते पुरुषमाहिं कहीइ प्रधान, जे जपइ तुझ नामाभिधान, ते पामइ पगिपगि नव निधान जे एकांत करइ ताहरुं ध्यान, आरोगइ ते वली अन्न पान, मनरंगि महीपति दीइ दान, याचकनइं दीइ दीनार दान ॥३१॥ जे करइ तुझ गुण तणु गान, ते पुरुष पुत्र संतानवान, नित जमण जमइ पकवान धान, आवडइ वली विद्या-वितान कलिकालमाहिं तुं कामधेन, ओलगइ१९ तुझ सुर तणी सेन, आई तुं अभिनव अमरवेलि, माहरी माय चिंता म मेलि०१ तुं पूरइ परमाणंद पूरि, तुं आपइ सुख संतान सूरि१०२, घरि भरि ०३ ऋद्धि तुं हरइ रोग, तुं देवि भणी लइ भला भोग तुं तिहुयणजण-नयणाभिराम, बीजुं तुह प्रत्यंगिरा नाम, उद्दाम-काम जिनधर्म-धाम, सेवकजन-मन-विश्राम-ठाम तुह्म नामिं अह्म घरि आठ सिद्धि, तुह्म नामिं सामिणि सुप्रसिद्धि, तुह्म नामि नव रस हुइ वृद्धि, तुम नामि लगिं पुहवी प्रसिद्धि श्रीपंचंगुलि परिहरि प्रमाद, सेवकनइं आपे सुप्रसाद, एकांत कृपा करी करो सार, इम हरख पइंपइ१०४ वार वार ॥ इति श्री पंचंगुलिमहामंत्रमयं स्तोत्रम् ॥ लिखितं श्रीसीरोहीनगरे । ॥३२॥ ॥३३॥ ॥३४॥ ॥३५॥ ॥३६॥ ॥३७॥ ८७. घर, ८८. समूह, ८९. जगजननी, ९०. यश, ९१. चर-अचर जग्याए, ९२. जमीन, ९३. बोलवा वडे, ९४. रसिक, ९५. विश्वास, ९६. डगले-पगले, ९७. द्रव्यनाम, ९८.?, ९९. सेवे, १००. माता, १०१. मूकशो, १०२. शूर, १०३. भरवू, १०४. बोले, For Private and Personal Use Only

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