Book Title: Shrutsagar 2014 09 Volume 01 04 Author(s): Kanubhai L Shah Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी आचार्य पद्यसागरसूरि वाक्-संयम सियार जब उस लाश के पास आया और सूंघकर देखने लगा; योगी की दृष्टि भी वहाँ पर गई। उसे मालूम पड़ा कि सियार आया है। वह इस लाश को खायेगा, भक्षण करेगा। दूर से ही योगी पुरुष ने अपने अन्तर की करुणा से कहा रे रे मुञ्चक मुञ्च सहसा, नीचस्य निंद्यवपुः योगी पुरुष ने दूर से देखकर उस सियार से कहा कि अवश्य ही तुमने पूर्व जन्म में कोई ऐसा अपराध किया होगा जिसका वह वर्तमान परिणाम है। इतनी निकृष्ट योनि में, पशु योनि में तुम्हारा जन्म हुआ है। यदि अब तुमने ऐसे गलत व्यक्ति की लाश को खाया तो भविष्य में तुम्हारी क्या गति होगी? यह भयंकर पापी आत्मा है। जीवन में कभी धर्म कार्य इसने किया नहीं। इसका सारा मनुष्य-जन्म निष्फल गया है। इसका सारा जीवन पाप-प्रवृत्ति से भरा हुआ रहा। ऐसी दुषित आत्मा की लाश है यह। इसे खाना छोड़। सियार ने कहा - भगवन्! आपका आदेश तो उचित है परन्तु मुझे भूख इतनी सता रही है कि जीना दुष्कर हो गया है। बड़ी मुश्किल से यह लाश मिली है। इसे भी आप मना कर रहे हैं। मुझ पर दया करिये। केवल थोड़ा-सा आहार का आधार मिल जाये, तो मुझे बड़ा सन्तोष होगा। इसकी यदि आँखें खा लूँ तो क्या हर्ज है? छोटी-सी आँख है। इस आँख ने क्या पाप किया होगा? योगी पुरुष ने सियार से कहा - ___नेत्रे साधु विलोक रहिते, इस आँख ने कभी सन्तपुरुषों का दर्शन नहीं किया। इसकी दृष्टि मात्र लोगों के दुर्गुणों पर गई। काक दृष्टि कैसी होती है? कौए की नजर जाती है गन्दगी पर। हमारी दृष्टि का यह विकार हमारे जीवन का विनाश करता है। हर व्यक्ति के दुर्गुण पर ही हमारी दृष्टि जाती है ह्यूमन साइकोलोजी है। मानवीय मनोविज्ञान है। आप यदि अपने मकान के अन्दर एक दम हाइट पेपर, सफेद कागज, बोर्ड पर लगा दें और मैं उसके बीचों-बीच काला बिन्दु रख दूं, तो आप सच कहें कि नजर कहाँ जायेगी? बिल्कुल केन्द्र में, सेन्टर में मैंने जहाँ काला बिन्दु लगा दिया है, सबकी नजर वहीं जायेगी। For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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