Book Title: Shrutsagar 2014 09 Volume 01 04
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 26 SEPTEMBER-2014 बनाया गया है तथा सुबोधिका टीका का साराभाई मणिलाल नवाब कृत गुजराती अनुवाद को सुबोधिका टीका का पुत्र तथा कल्पसूत्र का पौत्र बनाया गया है. जिस प्रकार एक पिता के अनेक पुत्र होते हैं, उसी प्रकार एक मूल कृति की अनेक पुत्र कृतियाँ होती हैं. उन पुत्र कृतियों की भी अनेक पौत्र व प्रपौत्र कृतियाँ होती हैं. इस प्रकार जैसे एक व्यक्ति का परिवार क्रमशः बढ़ता रहता है, उसी प्रकार एक मूल कृति के पुत्र-पौत्रादि बढ़ते रहने के कारण उसका परिवार भी बढ़ता है. और एक समय आने पर विशाल वंशवृक्ष बन जाता है. परन्तु जिस प्रकार उस परिवार का छोटे से छोटा सदस्य भी उस परिवार के मुखिया के नाम से जाना जाता है, उसी प्रकार एक कृति-परिवार के छोटे से छोटे सदस्य का सम्बन्ध भी कहीं न कहीं उस परिवार के मुखिया अर्थात् उस मूल कृति के साथ प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से अवश्य जुड़ा होता है. इस सम्बन्ध में एक उदाहरण प्रस्तुत है कृति - वंशवृक्ष कल्पसूल मूल कर्त्ता भद्रबाहु स्वामी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र की सुबोधिका टीका उपा0 विनयविजयजी गणि कल्पसूत्र की सुबोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद उपा0 विनयविजयजी गणि कल्पसूत्र की सुबोधिका टीका के हिस्से गणधरवाद पर हिन्दी प्रवचन आ० पद्मसागरसूरि कल्पसूत्र की सुबोधिका टीका के हिस्से गणधरवाद पर हिन्दी प्रवचन का गुजराती अनुवाद अशोक शाह For Private and Personal Use Only

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