Book Title: Shrutsagar 2014 09 Volume 01 04
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सितम्बर-२०१४ श्रुतसागर 27 उपर्युक्त उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि भद्रबाहुस्वामी द्वारा रचित कल्पसूत्र मूल के ऊपर उपाध्याय विनयविजयजी द्वारा रचित सुबोधिका टीका है. सुबोधिका टीका का एक हिस्सा है- गणधरवाद, गणधरवाद के ऊपर आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा दत्त प्रवचन संशय सब दूर भये, उस प्रवचन का अशोक शाह कृत गुजराती अनुवाद आतम पाम्यो अजवाळु का सम्बन्ध कहीं न कहीं कल्पसूत्र से स्थापित हो जाता है. अर्थात् वह कल्पसूत्र के परिवार के एक सदस्य के रूप में प्रस्थापित है. इस प्रकार आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर की सूचना पद्धति के आधार पर प्रत्येक कृति के साथ योग्य न्याय करते हुए वाचक, संशोधक व सम्पादक को उनकी वांछित कृति से सम्बन्धित प्रकाशन, अंक, हस्तप्रत आदि की सूचनाएँ अल्पतम समय में उपलब्ध करायी जाती हैं और किसी भी स्तर की संततिरूप कृति का उस परिवार के मुखिया के साथ किसी न किसी रूप में सम्बन्ध स्थापित कर उसे उस परिवार के सदस्य के रूप में मान्यता दी जाती है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगले अंक में "हस्तप्रतों में उपलब्ध विद्वानों के प्रकार एवं उसका परिचय” प्रस्तुत किया जाएगा. + + For Private and Personal Use Only '(क्रमश:...)

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