Book Title: Shrutsagar 2014 09 Volume 01 04
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19 श्रुतसागर सितम्बर-२०१४ ग्रंथोना सिलोक १०८००० छे, ते ताडपत्र पर लीखेला छे, तेने कोइ पण पंडीत वांची सकता नथी, ते नग्रना वनमध्ये श्रीशांतिनाथजीनो देहरो छे, ते नग्र मध्ये सांफ बीर्छ वाघनो भय घणो छे, ते त्यांथी आगल चाल्या के तेयां श्री रखवदेवजी तथा नेमजी नाम साधुजी रहे छे ते मुनी उमर वरस ९०नी अमो गया त्यारे हुंती, ते सांज उपरे (पहेलां) आहार लेवा निकले छे ते सुझता आहार मिले तो लेवे नहीतर लेवे नही. ते साधुजीना दरसन थयां छे, तयां थकी कोस ६५ गया एटले गंगानग्र छे, ते ननना वन मध्ये श्रीरीखवदेवजीनो देहरो छे, तेमां श्री प्रभाचंद्रजी नाम साधु रहे छे, ते मास १ मध्ये बे वार पारणो करे छे. ते जोगवाईनो आहार मिले तो लेणो नही तो बीजे मासे वात गइ, एवा मुनीराजना दरसण थाय छे. त्यांथी आगल चालवानो करता हता के एटले साधुजी अमोने कहो के आगल जासो नही. साथी ने येहांथी कोस ३०० गया एटले पछे एक टांग्नो मुलक आवे छे. एवी हकीकत अमाने श्रीपरभावचंद्रजीये कही एटले अमो सं. १८२१थी सालमां सर्वे जालायो करी १६ वरसे कुसलक्षेम घरे आवीया छां. एवा अमाना मोक्षगामीना दरसन थया छे. ए कागल संपूर्ण लिख्यो छे. नोंध-उपरना पत्रनी नकल मारी पासे जुनीभाषामां तेमज बाळबोध लिपिमां लखेली छे. अने ते लगभग १०० वरसनी लखेली लागे छे. ___ आ पत्र मां जे जे विगतो आपी छे ते बधी बहु विचारणीय छे. एक ठेकाणे श्रीऋषभदेव भगवाननो प्रासाद ४ कोस उंचो होवा- लख्यु छे. आथी कोसनो शु निश्चित अर्थ करवो ए समजातुं नथी. ऐतिहासिक दृष्टिए पण आनु शुं मूल्य होइ शके ए जोवानु रहे छे. छतां आ पत्र भाषानी दृष्टिए के एवी बीजी कोइ दृष्टिए विद्वानोने उपयोगी थइ पडशे एम लागवाथी अहीं छाप्यो छे. एनी सत्यासत्य हकीकत उपर वाचक वर्ग विचार करे अने इतिहासना अभ्यासीओ ए संबंधी कंइ खूलाशो बहार पाडे एवी आशा छे. (जैन सत्यप्रकाश वर्ष-४ अंक-३) ___ आ अंकना आ पत्रनी फूटनोंटमां तीर्थमाळामां तारातंबोलनी सविस्तर माहिती होवानो उल्लेख कर्यो छे. तारातंबोलविषयक उल्लेख ___ संग्राहक-श्रीयुत् सागरमलजी कोठारी कुछ मास पूर्व 'श्री जैन सत्य प्रकाश में तारातंबोलनगर विषयक पत्र प्रगट हुए थे। उस समय कहा गया था कि अगर अन्य किसी ग्रंथ में इस घटना से सम्बन्धित साहित्य हो तो प्रकाश में लाया जावें ताकि इस सम्बन्ध की ऐतिहासिक खोज की For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36