________________
आज, काल, कर जग मुआ, किया न आतम काज । पर पदार्थ के वश रहे, सफल हो कैसे काज ॥ हिन्वी अनुवाद सहित
3 6 ******RERA२ ५१ दुःख, पाप रोग और अनेक संकटों पर विजय पाने के तन-मन अचूक साधन हैं - यह हृदय से निकाल दो कि मैं गरीब हूं । दरिद्रता से मुक्त हो श्रीमन्त बनने का सरल उपाय है :
हमेशा प्रसन्न रहना, आनन्दमय जीवन व्यतीत करना ।
आनंद का अर्थ यह नहीं होता कि, माल-पानी उड़ा कर लेटे रहना, नींद लेना, पराई निंदा कर गप सप लड़ाते रहना। असली आनंद का सूर्योदय तो तब होता है जब कि मनुष्य स्वार्थ से यचकर परमार्थ की और आगे बढ़ता है।
सफलता का गुप्त मंत्र:
में महान है, अब तक मैं बाह्य जड पदार्थों में लुभा कर सुख की खोज करता रहा किन्तु कहीं शान्ति न मिली, वास्तव में सुख है आत्मा में। सम्पूर्ण सुखों का केन्द्र है आत्मा ! मैं प्रेमी ई. प्रेम ही मेरा जीवन है, मैं प्राणी मात्र की सेवा का प्रमी हूं। मैं मुखी हूं। सफलता मेरे दाये बाँये चलती है।
इन शब्दों को बार बार दोहराने से, यह मंत्र-स्त्री पुरुष दोनों के लिए एक सा लाभ प्रद है। जब उक्त मंत्र का आप को अच्छा अभ्यास हो जायगा तब आप अपने को एक अद्भुत प्रकाश की तरफ बढ़ते पाओगे । प्रेमज्योति आपको बहुत ऊँचे आसन पर विराजमान कर देगी। प्रेम ही ऐसी विपुल सम्पत्ति है, जिसे त्रैलोक्य की कोई ताकत छीन नहीं सकती है।
मी मनुष्यों की बातचीत में इतना माधुर्य होता है कि वे जिस से दृष्टि मिलाते हैं उनके मन में सनसनी उत्पन्न कर उसे अपने बस में कर लेते हैं।
एणी परे देई देशना, करे भविक उपकार रे ।
गुरु मयणा ने ओलखी, बोलावि तेणिवार रे चेतन ॥४॥ रे कुँवरी ! तू रायनी, साथे सबल परिवार रे । अम उपासरे आवती, पूछण अर्थ विचार रे चेतन० ॥५॥
आज किश्युं इम एकली, ए कुण पुरुसु रतन रे ।
धूरथी वात सवि कही, मयणा थिर करी मन चेतन ॥३॥ मन मांहे नथी आवतुं, अवर किशुं दुख पूज्य रे । पण जिन-शासन हेलना, साले लोक अबुझ रे चेतन ||७||