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मोहमयी कटु मदिरा पीकर, मन उन्मत्त हुआ है। मैं हूँ कौन कहां कैपा हूं. यह सब भूल गया है ॥ २६६६३७ * श्रीपाल रास
गोले और धनुष-बाण की टंकार सुन आकाश में व्यतंरादि देवी देवता दांतों तले अंगुली दें चकित हो गये। धन्य है ! पुण्यवान की पुण्याई छिपी नहीं रहती हैं। कुंवर के बांके रणवीर योद्धाओं के सामने अजितसेन के मुठ्ठी भर सैनिक टिक न सके, वे बात की बात में सभी तितर-बितर हो गए। एक सैनिक ने भागकर अजितसेन से कहा- महाराज की जय हो !
कीजिये कुछ फिकर, सब आप पर ही मीर है । झट सोचिये तदबीर, वरना फूटती तकदीर है ।
सैनिक की बात सुन के राजा अजितसेन के हाथ-पैर ठण्डे पड़ गये । उन्होंने शिविर में से बाहर निकल कर देखा तो चारों ओर घायल सैनिक भगवान ! भगवान !! करते हुए अपनी अन्तिम घड़ियां गिन रहे हैं, तो कोई प्राण ले मुंह छिपाकर भाग गए । फिर भी वे हताश न हुए । उन्होंने उसी समय अपने प्रधान मंत्री को एक सभा बुलाने का आदेश दिया । तेह इम बूझ तो सैन्य सजी जूझतो, वींटिया जत्ति सवसात राणे | ते वदे नृपति अभिमान तत्रिरुजियतू गणदी श्रीसल हिन रह जाणे ॥ ॥ १७॥ मानधन जाम मानेन ते हित वचन, तेह शुं जूझतो नविय थाके । बांधियो पाड़ि करि तेहसत सय भटे, हुआ श्रीपाल यश प्रकटवो के || च ॥ १९ ॥ पाय श्रीपाल ने आणियो तेह नृप, तेणे छोड़ावियो उचित जाणी । भूमि सुख भोगवो तात मन खेद करो, वदत श्रीपाल इम मधुर वाणी ॥ चं ॥ २० ॥ खंड चौथे हुई ढाल चौथी भली, पूर्ण कड़खा तणी एह देशी | जेह गावे सुजश एम नवपद तणो, ते लहे ऋद्धि सवि शुद्ध लेशी ॥ च॥ २९॥
फिर
राजा अजितसेन का भाषण :- समाइ अजितसेन स्वर्ण सिंहासन पर बैठे थे । आज उनके मुंह से यह स्पष्ट झलक रहा था कि इनके हृदय में मानसिक शांति नहीं, भी वे राजसभा में अपने प्रधानमंत्री, अमीर उमराव, शूरवीर योद्धाओं और राज्य कर्मचारियों के साथ बड़ी प्रसन्नता के साथ विचार विनिमय कर रहे थे । पश्चात् उन्होंने अपने एक भाषण में कहा :
वीरो ! धन्य हैं, उन वीर योद्धाओं और देशभक्त क्षत्रियों को कि जिन्होंने स्वामीभक्ति के लिये हंसते हंसते अपने प्राण-धनका समर्पित कर वीर गति प्राप्त की है। हमारा भी