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जब तक न स्थिर मन हो तब नक रात दिन समझाये । जब न दौड़े भोगों माही, भोग दोष दिखलावे || ३३० -RRIER-5 -% % %A5२ श्रीपाल रास साथ कुछ भगवान का भजन कर अपना जीवन सफल कर ले । यदि तू अपने आत्म कल्याण की राह भटक गया तो धनपाल सेठ के समान हाथ मलता रह जायगा। सच है, "काल करे सो आज कर ।"
कौन कहां है ? :-राजर्षि अजितसेन ने कहा-श्रीपाल ! बस इसी कारण मैंने सहर्ष अपने राजपाट के मोह का त्याग कर भगवानकी शरण ली । दीक्षा ग्रहण कर कठोर व्रत-नियमों की आराधना करने लगा। अन्त समयमें अनशन कर वहां से मैंने यहां जन्म लिया है । मैं आपका हृदयसे आभारी हूँ कि आपने समरभूमि में मुझे अपने गत जन्म के लेखे-जोखेसे मुक्त होनेका सुअवसर प्रदान कर मेरी आँखें खोल दी। फिर तो पूर्वके संस्कारों का पनपना कोई नई बात नहीं। यह मेरा सौभाग्य है कि आज मैं अवधिज्ञान के बल से यह जान सका कि कौन कहां है ?
सम्राट् श्रीपालकुंवर, मयणासुदरी और उनके सातसौ अमीर-उमराव राणा अपनी स्पष्ट राम-कहानी सुन चकित हो गए। उन्होंने राजर्षि अजितसेन को कोटि कोटि धन्यवाद दे सविधि बंदना की।
श्रीमान् पूज्य उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज कहते हैं कि यह श्रीपाल-रास के चौथे खण्ड की आठवीं ढाल संपूर्ण हुई। श्रीसिद्धचक्र व्रत-आराधक श्रीतागण और पाठकों को श्री सिद्धचक्र के प्रभाव से सदा जय-विजय, धन-धान्य सुख-सौभाग्य विनय और यश की निश्चय ही प्राप्ति होती है।
धनासा हाथ मलता रह गया:-एक सेठ था उसे गांव के लोग धनपाल कह कर पुकारा करते थे, किन्तु वह था बड़ा कंगाल । उसका घर-घराना, गठीला बदन रुप सौदर्य देख, एक संत को बड़ी दया आई। उन्होंने सोचा, बेचारा मानव भव, उत्तम कुल, निरोग शरीर पाया है, इसे एक ऐसा सुन्दर अवसर हूँ जिस से यह अपने धनपाल नाम को सार्थक कर जनम सुधार ले । उन्होंने उसे एक पारस पत्थर का छोटासा टुकड़ा देकर कहा-सेठ ! मैं तीर्थयात्रा करने जा रहा हैं। मैंने इस पारसमणि से बहुत बहुत लाभ लिया है । अब आप भी इस अनमोल मणि से अपनी मनोकामना सफल कर लें। आप जानते हैं इस छोटे से पत्थर में क्या चमत्कार है ? नहीं ! यह पारस है। इस के स्पर्श से लाखों मन लोहा अपना रंग बदल क्षण में स्वर्ण बन जाता है । आप इस मणि को अपने पास रखें । देखते क्या हो, तुम निहाल हो जाओगे | सेठ-महात्माजो! मैं आपके इस अनुग्रह के लिए हृदय से आभारी हूं। आप वापस कब तक दर्शन देंगे ? महात्मा-सेठ ! मैं आज से ठीक एक वर्ष में वापस आकर अपनी धरोहर ले लूगा । आप इस अवसर को हाथ से न गंवाएं । महात्मा आशीर्वाद दे यात्रा करने आगे बढ़ गए।
धनपाल सेठ पारसमणी को पाकर फूले न समाए । वे मणि को छाती से लगा कर हवाईमहल बांधने लगे। एक दिन वे बाजार में गए। वहाँ लोहे के भावकी पूछताछ की। कई जगह भटके,