Book Title: Shripalras aur Hindi Vivechan
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Rajendra Jain Bhuvan Palitana

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Page 375
________________ - - - --- . । ---- रखो सदा निष्पक्षता, कर दो दूर कु टेक । बनो परीक्षक जगत के, रख कर संग विवेक ।। हिन्दी अनुवाद सहित -RRIERRENES -594 * २ ३६१ मोदक से भूख भाग सकती है ?:-मुमुक्षु आत्मार्थी स्त्री-पुरुषों को सभ्य ग्दर्शन के सतसठ* भेदों का विस्तृत वर्णन सद्गुरु से अवश्य ही जानना चाहिये । संक्षिप्त में अनंतानुबंधी क्रोध-मान-माया-लोभ और समकित-मिश्र, मिथ्यात्व मोहिनी इन सात प्रकृतियों के क्षयोपशम, और क्षय से क्षयोपशम, उपशम और क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त होता है। इस जीवात्मा ने क्षयोपशम समकिन की योग्यता तो अनेक बार पाई और गवांई, उपशम की अवधि पांच बार ही मानी जाती है, उपशम समकित वाले मुमुक्षु अति अल्प भव में मोक्ष पाने की योग्यता प्राप्त कर लेते हैं । क्षायिक समकित का विकास सदा अचल ही रहता है। __अतः परमपद मुक्ति की साधना का मूल सम्यग्दर्शन ही है। इसके रहस्य को समझ कर उसका बिना मनोयोग के आचरण किये मानव का गंभीर शास्त्र अध्ययन, उसकी बड़ी चटपटी लच्छेदार संभाषण कला और जय-तप चारित्र केवल उदर-पोषण का साधन है। जब तक मानव का लक्ष्य शुद्ध और दृष्टि निर्दोष न हो तब तक उसे मानसिक शांति और मुक्ति प्राप्त होना असंभव है । सच है, क्या स्वप्न में केशरिया-मोदक से भूख भाग सकती है ? नहीं। धन्य है वे साधक जो कि सम्यग्दर्शन की कटोर साधना में संलग्न हैं या अपने उद्देश्य में सफल मनोरथ हो परम-पद मोक्ष के अतिथि बन चुके हैं। परम पान साधक मनभावन श्री सम्यग्दर्शन को हमारा त्रिकाल वंदन हो। रे मानव ! तु दर्शन पदालंकृत श्री सिद्धचक्र को निकाल कोटि-कोटि वंदन कर । भक्ष अमक्ष न जे विण लहिये, पेय अपेष विचार । कृत्य अकृत्य जे विण लहिये, ज्ञान ते सकल अधार रे । भ. सि.॥३१॥ प्रथम ज्ञान ने पछी अहिंसा, श्रीसिद्धान्ते भाख्युं । ज्ञान ने वेदो ज्ञान म निदो ज्ञानी ए शिव-सुख चाख्यु रे ॥म. सि. ॥३२॥ सकल क्रिया - मूल ते श्रद्धा, तेहर्नु मूल जे कहिये । 1 तेह ज्ञान नित नित वंदी जे, ते विण कहो किम रहिये रे ।।भ. सि.॥३३॥ सम्यग्दर्शन के संक्षिप्त भेदः-४ सद्दहणा, ३ लिंग, ६ जयणा, १० विनय, ३ शुद्धि, ५ दोष, ८ प्रभावक, ५ भूषण, ५ लक्षण, ६ भावना, ६ आगार और ६ स्थान । कुल सतसठ भेद हैं। इनका वर्णन अन्यत्र देखें।

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