Book Title: Shripalras aur Hindi Vivechan
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Rajendra Jain Bhuvan Palitana

View full book text
Previous | Next

Page 393
________________ गृह काम करते हुए, जो रहे अनुभत्र दक्ष । न्याय सदा जिनेश पर, होय मुक्त प्रत्यक्ष ॥ हिन्दी अनुसाद सहित RESENRELAM २ ३७५ माहरे तो गुरु चरण पसाए, अनुभव दिल मांहि पेठो । ऋद्धि वृद्धि प्रकटी घट मांहि, आतम गति हुई बेठोरे ॥ मु.॥ १०॥ उग्यो समकिन रवि झल हल तो, भरम तिमिर सवि नाठो रे। तग तगता दुर्नय जे ताग, तेह नो बल पण घाठो रे। मु. ॥१९॥ मेरु धीरता सर्वि हर लींनी, रहो ते केवल भाठो। हरि सुर घट सुर तरु की शोभा, ते तो माटी काठो रे ॥ मु. ॥१२॥ हरख्यो अनुभव जोर हतो जे, मोह मल्ल जग लूंठो । परि परि तेहना मर्म देखावी, भारे कीधी भूठो रे ॥ मु.॥१३॥ अनुभव गुण आव्यो निज अंगे, मिटयो निज रूप मांठो । साहिब सन्मुख सुन जर जोता, कोपा थाए उपरांठो रे ।। मु, ।।१४ थोड़े पण दंभे दुःख पाम्या, पीट अने महापीठो रे । अनुभव वन ते दंभ न राखे, देभ धरे ते धीठो रे । मु.॥१५॥ .. अनुभव वंत ते अदभनी रचना, गायो सरस सुकठो रे । भाव सुधारस ते घट घट पीयो, हुओ पूरण उत्कंठो रे ।। मु. ॥१६॥ एक व्यक्ति को लाखों श्लोक मुख पाठ है, वह अच्छा पढ़ा लिखा चोटी का विद्धान है, उसकी सेवा में सकड़ों शिष्य प्रशिष्य सदा हाथ बांधे खड़े रहते हैं। फिर भी यदि उसमें अन्तरंग हृदय विशुद्धि विशुद्ध आचार-विचार और अनुभव ज्ञान की कमी है। तो ज्ञानी भगवन्तों की दृष्टि में वह जिन शासन का एक घोर शत्रु है। एक सड़ापान सारे टोकने को सड़ा देता है । श्रीपाल रास लेखक पूज्य उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज कहते हैं कि मुझे तो परम कृपालु गुरुदेव के श्री चरणों की कृपा से व्याकरण, साहित्य, न्याय, जैनागमादि सैद्धान्तिक विषय और आचार-विचार की विशुद्धि के गूढ़ रहस्य के अनुभव की जो ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त हुई है उसी के प्रभाव से अब मेरे हृदय में चारों ओर विशुद्ध समकित रत्न की एक दिव्य ज्याति चमक उठी है । अब मेरे मन में संपूर्ण संकल्प विकल्प और न्याय शास्त्र के तर्क वितर्क की शंकाओं के टिम टिमाते तारे, अनादि का अज्ञानांधकार दूर हुआ । अतः अब में सदा एक विशेष अनुपम आनन्द में मग्न रहता हूँ । सच है अनुभवी मानव की दृष्टि में मेरु पर्वत, काम कुंभ और कल्प वृक्ष का कोई महत्व

Loading...

Page Navigation
1 ... 391 392 393 394 395 396 397