Book Title: Shripalras aur Hindi Vivechan
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Rajendra Jain Bhuvan Palitana

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Page 391
________________ ___ जीव काल संसार यह, तीनों अनादि अनंत । चेतन ! खोटी समझ से, भमे न सुख लहंत ॥ हिन्दी अनुवाद सहित - - - - ३७७ अवयव सवि सुन्दर होय देहे, नाके दिसे चाठो । ग्रन्थ ज्ञान अनुभव विणते हवं, शुक जिस्यो श्रुत पाठोरे ।। मु.॥७॥ संशय नवि भांजे श्रुन ज्ञाने, अनुभव निश्चय जेठो । वाद विवाद अनश्चित करतो, अनुभव लिग जाय देखो रे । . मु ॥८॥ अनुभव प्राप्त करें:-हे प्रभो ! आज इस श्रीपाल रास के शेप भाग को संपूर्ण करते मेरा हृदय फूला नहीं समाता क्यों कि पूज्य विनय विजयजी महाराज रचित श्रीपाल रास की साढ़े सातसौ गाथाओं के बाद इस ग्रन्थ में अमृत सम ज्ञान गंगा की पूर्णता का सम्पूर्ण श्रेय देवाधिदेव आपको ही है । में उपाध्याय यशोविजय तो एक निमित्त मात्र हूँ। जैसे कि श्री अष्टापद गिरी पर हजारों सन्त महात्माओं को पारणा कराने में एक अति अल्प दूध पाक के पात्र के साथ श्री गौतम गणधर के हाथ का यशस्वी अगूठा । सफलता का प्रमुख साधन हैं किसी सन्त महात्मा के चरण स्पर्श, सत्संग और वर्षों का सैद्धान्तिक अनुभव | बिना अनुभव आचरण मानव के प्रत्येक आचार विचार और साहित्य सर्जन संपादनादि कार्य प्रायः मिथ्या निरस है । अनुभव ज्ञान के तीन भेद हैं । उदक कल्प, पयः कल्प, और अमृत कल्प । (१) उदक कल्प:-व्याकरण साहित्य, कथा वार्ता, दोहा संवैया, रास आदि का ज्ञान उदक कल्प वान है। अर्थात् इन ग्रन्थों का मानव को श्रवण और खाध्याय तक ही आनंद आता है। जैसे कि शीतल जल से कुछ समय शांति मिल सकती है, किन्तु अन्त में मानव प्यासा का प्यासा ही रहा । (२) पयः कल्पनान-विना गुरु गम और आचरण के जैनागम, सूत्र सिद्धान्त को पढ़ना श्रवण करना पयः कल्प ज्ञान है। जैसे कि दूध पीने से तरी आई किन्तु भूख तो शांत न हुई । इसी प्रकार स्वाध्याय ध्यान शास्त्र वाचन से वैराग्य रंग तो चढ़ा किन्तु मन की चंचलता न मिटी । (३) अमृत कल्प ज्ञान:-गुरु वचन का बड़ी श्रद्धा भक्ति से बहुमान कर जैना गम सूत्र सिद्धान्त के गूढ़ रहस्य को समझ उसका सतत मनन चिंतन कर उसका सदा आचरण करना अमृत कल्पज्ञान है। जैसे की अमृत पान से मानव के वर्षों के रोग शोक आधि व्याधियाँ छू मंतर हो जाती है। फिर यह एक स्वस्थ नव-जीवन का अनुभव करने लगता है। इसी प्रकार अनुभव ज्ञान भव भ्रमण के संक्रामक रोग से मुक्त होने का एक अचूक रामबाण उपाय है। रे मानव ! तू जैसे अपने दैनिक लोक व्यवहार में जनता और परिवार के लोगों से मान प्रतिष्ठा पाने और व्यापार प्रगति में सदा सतर्क सावधान रहता है। नूतन आय के महत्वपूर्ण मार्ग खोजने में दिन रात तन तोड़ परिश्रम करता है। इसी प्रकार अब अपने

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