Book Title: Shripalras aur Hindi Vivechan
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Rajendra Jain Bhuvan Palitana

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Page 364
________________ जीवित वही है जिसके हृदय में भय शंका, और चिन्ता नहीं है। २५०199 *966RSIN R श्रीपाल राम से ही मति त, अवधि ये तीन ज्ञान अपने साथ लाने वाले चौतीस अतिशय और वाणी के पैतीस गुण विभूषित, अपने राजपाट विपुल वैभवादि को टुकरा, परम-पावन वीतराग-दीक्षा ग्रहण कर अपने कठोर त्याग तप से मनःपर्यव, और केवलज्ञान प्राप्त कर जनता-जनार्दन को परम पद - बोक्ष की शह दर्शया, गगनाम भीमरिहत है, इनके जन्म के समय नरक में प्रकाश और वहाँ के जीवात्माओं भी क्षणिक शांति मिलती चौतीस अतिशयः - जिनेन्द्र देव के जन्म से चार अतिशय, घाती कर्म-(ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अंतराय ) के क्षय होने से ११ अतिशय तथा देवकृत १९ अतिशय होते हैं। जन्म के (१) भगवान का शरीर अति सुन्दर गौर वर्ण निरोग, होता है। (२) उनके शरीर का रुधिर और मांस गौ दूध के समान सफेद और विकार-रहित होता है। (३) उनका आहार-भोजन और निहार-टट्टी पेशाब धर्मचक्षु से अदृश्य होते हैं। (४) उनके श्वास में कमल के फूल सी बढ़िया सुगंध होती है। घातीकर्म के क्षय के बादः--(१)भगवान की व्याख्यान समा एक योजन (चार कोस) लम्बी चौड़ी भूमि में तीन लोक के मनुष्य, देव और पशु-पंखी बड़े आनंद से समा सकते हैं (२) भगवान सदा अर्धमागधी भाषा में ही धर्मोपदेश देते हैं किन्तु देव, मनुष्य और पशु-पंखो अदि प्रत्येक जीव को उस समय यही ज्ञात होता है कि भगवान तो हमारी हो भाषा में उपदेश दे रहे हैं, और सभी जीव उसको बड़ी सरलता से समझ लेते हैं । (३) भगवान जहां भी विचरते हैं, विराजते है यहाँ चारों ओर के रोग-शोकादि नष्ट हो जाते हैं। (४) भगवान के समवसरण में प्राणी मात्र अपने जन्मजात बैरभाव को भूल थे आपस में एक-दूसरे से प्रेम करने लग जाते हैं, जैसे सांप-चूहा, बिल्ली, कुत्ता, सिंह, हरिण आदि । (५) भगवान जिनेन्द्र जिस दिशा और देश में प्रवास करते हैं वहाँ कभी दुष्काल नहीं पड़ता है । (६) आपस में युद्ध नहीं छिडते हैं। (७) हैजा, प्लेग आदि संक्रामक राग नहीं फैलते हैं । (८) म अतिवष्टि होती है। (९) अनावृष्टि से नया पाक नष्ट नहीं होता । (१०) धान्य के पाक में कीड़े नहीं लगते । (११) जिनेन्द्र भगवान का ऐसा सुन्दर दिव्य तेज है कि दशंक-गण उनके सामने आँख उठाकर देख नहीं सकते हैं, अतः उस तेज को सम बनाने के लिये उनके सिर के पीछे सदा एक भा-मण्डल रहता है। देवकृत अतिशयः-(१) मणिमय रत्न सिंहासन (२) भगवान के मस्तक पर तीन छत्र (३) इन्द्रध्वज (४) भगवान पर चंवर सदा डोलते रहते हैं (५) भगवान के आगे आकाश में धर्मचक्र चलता है (६) भगवान के शरीर से बारह गुणा बड़ा अशोक वृक्ष, जिनेन्द्र के मस्तक पर छाया करते हुए सदा साथ चलता है (७) भगवान जिनेन्द्र सदा पूर्व दिशा की ओर ही मुख रख कर देशना देते हैं किन्तु चारों दिशाओं में बैठी जनता को ऐसा ज्ञात होता है कि भगवान तो हमारी ओर मुंह करके चारों दिशा में बिराजे हैं। (८) भगवान के समदरसरण के मागे चांदी, सोना और रत्न-मय तीन कोट होते हैं। (९) भगवान चलते हैं तब नव स्वर्ण कमल आगे-आगे बिछते जाते हैं, भगवान उन कमलों पर पैर रखकर चलते हैं। (११) भगवान के दीक्षित होने के बाद उनके नख मोर केश फिर आ-जीवन नहीं बढ़ते। (१२) भगवान की सेवा में कम से कम लगभग एक करोड़ देवता रहते हैं। (१३) देव सुगन्धित जल का छिड़काव करते । (१४) अल और स्थल में उत्पन्न फूलों की घुटने तक वर्षा होती है । (१६) उत्तम पंखी भगवान को प्रदक्षिणा देते हैं। (१) सदा मंद-मंद अनुकूल हवा चलती हैं । (१८) भगवान जिस मार्ग से

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