Book Title: Shripalras aur Hindi Vivechan
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Rajendra Jain Bhuvan Palitana

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Page 324
________________ जबतक स्वयं अपना कर्तव्य पूरा न कर दिया हो तबतक आपको दूसरों की आलोचना नहीं करनी चाहिये । * ३११ हिन्दी अनुवाद सहित १८ 99 अब आप अपने मन को आज्ञा दें । रे मन ! तू पाप मार्ग में इधर-उधर न भटक, मैं अब चार शरण, भगवन्नामस्मरण करते हुए शयन करता हूँ। मैं काल चार बजे स्वस्थ होकर बड़े आनंद से उहूंगा। मेरा मन और मस्तिष्क उस समय फूल सा हलका प्रफुल्लित होगा । साहू सरणं इसके बाद जब तक आपको नींद न लगे निम्न मंत्र का बार बार स्मरण करो ॐ आनंदम् हीं आनंदमश्री आनंदम् ऐं क्लीं ॐ । सहजानंदम् सहजानंदम्, सहजानंदम् ॐ ह्रीं ॐ ॥ परमानंदम्, परमानंदम् परमानंदम् ॐ श्रीं ॐ । ॐ आनंदम् ह्रीं आनंदम् श्री आनंदम, ऐं क्लीं ॐ ॥ चार चरणः- अरिहंते शरणं पवज्जामि, सिद्धे शरणं पवज्जामि, पवज्जामि | केवल पन्नतं धर्मं शरणं पवज्जामि । पांच मेद छे खंतिना, उवयारवयार विवाग रे । वचन धर्म तिहाँ तीन छे, लौकिक दोई अधिक सोभाग रे || सं. ॥२५॥ चंग रे ॥ सं ॥ २६ ॥ अनुष्ठान ते चार छे प्रीति भक्तिने वचन असंग रे । त्रण क्षमा छे दोय मां अग्रिम दोय मां दोय वल्लभ स्त्री जननी तथा तेहना कृत्य मां जुओ राग रे । पक्किमणादिक कृत्य मां, एम प्रीति भक्तिनो लाग रे || सं. ॥२७॥ वचन ते आगम आसरी, सहेजे थाय चक्र भ्रमण जिम दंड थी, उत्तर तद भावे असंग रे । चंग रे ॥ सं. ॥२८॥ क्षमा के पांच भेद : - (१) उपकार क्षमा- किसी मनुष्य ने आपका उपकारभला किया हो उसके समय पर कटु शब्द, कटु व्यवहार को चुपचाप सहन करना उपकार क्षमा है और बिना मन से अथवा किसी भयादि लज्जा से परस्पर खमत खामणा क्षमा-याचना करना उपचार क्षमा है । ( २ ) अपकार क्षमा- किसी श्रीमन्त, चलवान मनुष्य के सामने निरुपाय हो चुप बैठना अपकार क्षमा है । (३) विचार क्षमा-क्रोध एक ठण्ठी आग है, यह मानव के अनेक जन्म क्रोड़ + पूर्व के जप, तप, संयम को + सित्तर लाख छप्पन हजार कोड़ वर्ष का एक पूर्व होता है ।

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