Book Title: Shripalras aur Hindi Vivechan
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Rajendra Jain Bhuvan Palitana

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Page 323
________________ अगर तुम आलसी हो तो अकेले मन रहो, अगर तुम अकेले हो तो आरमी मत रहो । ३१०४EAR RRRRRRRERA श्रीपाल रास गत को सोने से पहले:-यह वीर्य को सुरक्षित रखने की एक अति महत्वपूर्ण बड़ी चमत्कारिक क्रिया है। इससे जहज ही आपकी शारीरिक थकावट दूर होकर आपको बड़ आनन्द से नींद आती है, स्वास्थ को बल मिलता है । आप रात को सोते समय जल से अपने हाथ-मुंह और पैर को जंघा तक धो डालें । फिर अपने बिछोने पर सीधे चित्त लेट जाएं, सिर के नीचे तकिया न रखें। दो मिनिट चुप चाप शांत लेटने के बाद एक गहरी श्वास लेकर अपने फेफड़ों के अन्दर की दूषित-विपैली हवा दूर कर दें। फिर सिर, नेत्र, गर्दन छाती पैर आदि शरीर के प्रत्येक भाग पर दृष्टि डाल कर उन अंगों को बिलकुल ढीले कर दो। ऐमा तीन बार करने के बाद अपने दोनों हाथों से शरीर के प्रत्येक अंग को स्पर्श करते हुए यह हद भावना करो कि मेरे सब अंग नियमित रूप से बराबर काम कर रहे हैं। यदि किसी जगह कोई विशेष विकार-रोग है तो उस स्थान पर अधिक हाथ रखना चाहिए। और यह भावना करना चाहिये कि मेरा रोग दूर हो रहा है । नंगी तलवार है। यह बाहर से जितनी सुन्दर और उपयोगी है, उतना ही अन्तिम फल घातक सिद्ध हुआ है । इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं दम, खांसो, हृदयरोग और स्त्री-पुरुषों के अनेक गुप्त रोग । वृद्ध अनुभवो महानुभावों का कहना है कि आज नवयुवकों के मुह पर असमय में जो बुढ़ापा छा जाता है, उसका एक यह भी प्रमुख कारण है सायकल का उपयोग । कारण स्पष्ट ही है कि पैदल चलने घूमने फिरने से मानव के रक्त में एक विशेष गति उत्पन्न हातो है, इसके अभाव में शरीर में कुरूपता बाना स्वाभाविक ही है। * रोग दूर करने की विधिः-बिछोने पर लेटकर आपके शरीर में जहाँ भी रोग-पीड़ा हो, उस पर हाथ रख कर एक गहरी श्वास लें फिर अपने शरीर के प्रत्येक अंग को आप आज्ञा दें कि तुम बिलकुल शिथिल ढीले हो जाओ । ऐसा तीन बार करें। जब आपके प्रत्येक अंग शिथिल हो जांय उस समय भाप अपने मन को जहाँ रोग हो उस पर स्थिर करो, मन में दृढ़ संकल्प करो कि मेरा रोग इस स्थान से हटकर शस द्वारा बाहर निकल रहा है। कुछ दिनों में आप अवश्य ही बिना औषध के स्वस्थ-निरोग हो जायेंगे । चाहिए अटल श्रद्धा, तु सकल्प । जैसे मान लो आपको कब्ज अथवा अपच का रोग है तो आप सोते समय अपने सारे शरीर को शिथिल कर अपने पेट पर दोनों हाथ रख कर पहले मन को पेट पर स्थिर करो। फिर अपने मन को आज्ञा दो कि वह आपके समस्त उदररोग को जड़ से निर्मूल कर मार भगाए। इस प्रकार दस-पंद्रह मिनिट करने के बाद फिर कल्पना करो कि मेरी जठराग्नि, तिल्ली, लिवर, आंतड़ियाँ सब बराबर अपना काम कर रहीं हैं, दुषित मल अलग हो रहा है। इसे भी दस-पंद्रह मिनिट बड़े मनोयोग से करियेगा । इस प्रकार आप दृढ विश्वास के साथ एक सप्ताह करें। फिर देखो कि उसका कितना सुन्दर परिणाम होता है । यह योग एक अच्छे अनुभवी विद्वान बद्ध महोदय का परीक्षित है ।

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