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ॐ अनिमः ॐ ह्रीं सिखाई नरः
श्रीपाल-रास
(हिन्दी अनुवाद सहित) अनुवादक-भीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के शिक्ष्य मुनि श्री न्यायविजयजी
द्वितीय - खण्ड
मंगलाचरण (ग्रन्थकार की ओर से ) सिद्धचक्र आराधतां, पूरे वांछित कोड़। सिद्धचक्र मुज मन चस्यु, विनय कहे कर जोड़ ॥१॥ सारद सार दया करी, दीजे वचन विलाल ।
उत्तर कथा श्रीपाल नी, कहेवा मन उल्लास ॥२॥ जैसे दीपक घर को जगमगा देता है, उसी प्रकार आप के जीवन को चमकाने का एक मात्र उपाय है, श्री सिद्धचक्र आराधन । यदि आप जीवन, भाग्य और भविष्य के समस्त अन्धकार को दूर करना चाहते हैं तो शीघ्र ही नवपद - ओली, श्री सिद्धचक्र आराधन करें ।
आप वंचित न रह जाय ?
आप जीवन में जो कुछ प्राप्त करना चाहते जिस से आप को अधिक मोह है, वह वस्तु वह व्यक्ति आप से कोसों भागते हैं, अनायास अनेक कठिनाइयों बीमारियां, उलझनें आकर आप को धर दबाती है। इस का प्रमुख कारण है, आप
अब तक श्री सिद्धचक्र आराधन से वंचित रहे हैं। मन पर नियंत्रण करने का सरल __और सुन्दर साधन है श्री सिद्धचक्र आराधन । मन में अपार शनि, जादुई चमत्कार है।