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जग में बेरी दोय हैं. एक राग अझ द्वप । इनके व्यापार से, कौन पाए संतोप? ६. 2004-02-8 -RR RE श्रीपाल रास
श्रीपाल - पूज्य माताजी ! यह सारा श्रेय आपकी बहू को है. मैं इसी के सहवास, प्रेरणा से नवजीवन और प्रत्यक्ष प्रभावी श्री जैन धर्म को पा सका है। कमलप्रभा ने पुत्रवधू को गले लगा आशीर्वाद दिया "बेटी ! तेरा सुहाग अमर रहे। तू सौभाग्यवती हो चिरंजीव ! पूर्ण-चंद्र के समान तेने अपने गुणों से श्रीपाल को धर्मप्रेमी बना उज्वल यश प्राप्त किया ।" सुणो पुत्र कोसंबी सुण्यो, वैद्य एक वैद्यक बहु भण्यो । तेह भणी तिहाँ जाउँ जाम, ज्ञानी गुरु मुज मलिया ताम ।।१।।
म पूछयो गुरु चरणे नमी. कर्म कदर्थन में बहु खमी ।
पुत्र एक छे मुज वालहो, ते पण कर्मे रोगे ग्रह्यो ॥१४॥ तेह तणो किम जाशे रोग? के नहीं जाए कर्म संजोग ? दया करी तुज दाखो नेह, हंछ तुम चरणों नी खेह ।।१५।।
तव बोल्या ज्ञानी गुणवंत, म कर खेद सांभल वृत्तन्त ।
ते तुज पुत्र कुष्ठीये ग्रह्यो, उम्बर राणो करी जश लह्यो ।।१६।। मालवपति पुत्रीए वर्यो, तस विवाह कुष्टीए कर्यो । धरणी वयणे तप आदर्यु, श्री सिद्धचक्र आगधन कयें ॥१७॥
तेथी तुज सुन थयो निरोग, प्रकटयो पुण्य तणो संयोग ।
वली एह थी वधसे लाज, जीती घणा भोगवशे राज ||१८|| कमलप्रभा का प्रवाप्त परिचयः--
__ बेटा ! मैं तुम्हें छोड़ रोती बिलखती किसी वद्य की खोज में कोसंबी जा रही श्री। मार्ग में मेरी एक मुनिराज से भेट हुई। उन्हें सविधि बंदन कर, मैंने अपना परिचय दिया। मेरी करुण कथा सुन गुरुदेव ने हृदयस्पर्शी मार्मिक शब्दों में बड़ा सुन्दर उपदेश दे मुझे धीर बंधाया। किन्तु फिर भी मोहवश मेरा दुर्बल हृदय उनसे पूछ बैठा । कृपालु ! मेरे लाल का क्या होगा ? गुरुदेव ने जो कहा था वहीं आज प्रत्यक्ष तुम्हें मालवपति का जमाई देख मेरा मनमयूर आनन्द विभोर हो नाच रहा है। धन्य है उन सद्गुरुदेव को धन्य है।