Book Title: Shiv Mahimna Stotram
Author(s): Thakurprasad Pustak Bhandar
Publisher: Thakurprasad Pustak Bhandar

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * शिवमहिम्नस्तोत्रम् के स कल्माषः कण्ठे तव न कुरुते न श्रियमहो विकारोंऽपि श्लाघ्यो भुवनभयभगव्यसनिनः ॥१४॥ हे त्रिनयन ! सिन्धु विमन्थनसे उत्पन्न कालकूटसे असमय में ब्रह्माण्ड के नाश से डरे हुए सुर व मसुरों पर कृपा करके एवं संसार को बचाने की इच्छा से उस (कालकूट )को पान करनेसे आपके कण्ठकी कालिमा मी शोमा देती है। ठीक ही है, जगत् उपकारकी कामना वाले दूषण भी भूषण समझे नाते हैं । असिद्धार्था नैव स्वचिदपि सदेवासुरनरे निवर्तन्ते नित्यं जगति जयिनो यस्य विशिखाः । स पश्यन्नीश ! त्वामितरसुरसाधारणमभत् स्मरः स्मर्तव्यात्मा न हि वशिषु पथ्यः परिभवः॥१५॥ जो विजयी कामदेव अपने वाणों द्वारा नगत् के देव, मनुष्य और राक्षसों को बीतने में सर्वदा समर्थ रहा,वही कामदेव अन्यदेवों के समान आपको मी समज्ञा, जिससे वह स्मरण मात्र के लिए ही रह गया ( दग्ध हो गया)। जितेन्द्रियों का अनादर करना अहितकारक ही होता है ॥ १५ ॥ मही पादाघाताद् व्रजति सहसा संशयपदम् पदं विष्णोर्धाम्यद् भुजपरिघरुग्णग्रहगणम् । For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34