Book Title: Shiv Mahimna Stotram
Author(s): Thakurprasad Pustak Bhandar
Publisher: Thakurprasad Pustak Bhandar

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * शिवमहिम्नस्तोत्रम् * रथः क्षोणी यन्ता शतधृतिनगेन्द्रो धनुरथो रांगे चन्द्रार्को रथचरणपाणिः शर इति । दिधक्षोस्ते कोऽयं त्रिपुरतृणमाडम्बरविधिविधेयैः क्रीडन्त्यो न खलु परतन्त्राः प्रभुधियः ॥१८॥ __ हे ईश ! तृण के समान त्रिपुरको जलाने के िलए पृथ्वी का रथ, ब्रह्मा को सारथी, हिमालय को धनुष, सूर्य-चन्द्र को रथ का चक्र तथा विष्णुको विषधर वाण बनाना आपका आडम्बर मात्र है। विचित्र वस्तुओं से क्रीडा करते हुए समर्थों की बुद्धि स्वतन्त्र होती है ॥ १८॥ हरिस्ते साहस्रं कमलबलिमाधाय पदयोर्यदेकोने तस्मिन्निजमुदहरन्नेत्रकमलम् । गतो भक्त्युद्रेकः परिणतिमसौ चक्रवपुषा त्रयाणां रक्षायै त्रिपुरहर! जागति जगताम् ॥१९॥ __ हे त्रिपुरहर ! विष्णु आपके चरणों में प्रति दिन कमलों का उपहार देते थे। एक दिन एक की कमी होने के कारण उन्होंने अपने एक कमलवत् नेत्रको निकाल कर पूरा किया। यह भक्ति की परम सीमा चक्र के रूप में आज संसार की रक्षा किया करती है ॥ १९॥ ऋतौ सुप्ते जाग्रत्त्वमसि फलयोगे ऋतुमताम् क्व कर्म प्रध्वस्तं फलति पुरुषाराधनमृते । For Private and Personal Use Only

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