Book Title: Shiv Mahimna Stotram
Author(s): Thakurprasad Pustak Bhandar
Publisher: Thakurprasad Pustak Bhandar

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * शिवमहिम्नस्तोत्रम् भाषार्थ : - - लङ्कापति रावण अभीष्ट सिद्धि के निमित्त श्री शंकरजी महाराज से प्रार्थना करता है कि जो श्री महादेवजी जटारूपी वन से गिरते हुए जल के प्रवाह से पवित्र कण्ठ में बड़े-बड़े सर्पों की माला को लटका कर डमडम शब्द करने वाले डमरूको बजाते हुए ताण्डव ( नृत्य ) करते हैं वह श्री महादेवजी महाराज हमारा मंगल करें ॥ २ ॥ धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥ ३ ॥ भाषार्थ : -- पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती की क्रीड़ा के बान्धव और अति रमणीय प्रकाशमान कृपा कटाक्षों से भक्तों की घोर आपत्ति को दूर करनेवाली वाणी से नग्नरूप श्री महादेवजीके विषे मेरा मन आनन्द को प्राप्त होवे ||३|| जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभाकदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे । मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदमद्भुतं विभत्तु भूतभर्तरि ॥ ४ ॥ For Private and Personal Use Only

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