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* भाष -टोका सहितम्
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥ १२ ॥
भाषार्थ :- वह कौन-सा शुभ समय होगा, कि जिस समय पर मैं पत्थर और पुष्पों की शय्या में सर्प और मोतियों की माला में, बहुमूल्य रत्न और मृत्तिका के ढेलों में, शत्रु और मित्र में, तृण और नीलकमल के समान नेत्र वाली स्त्री में तथा प्रजा और चक्रवर्ती राजा में एक दृष्टि करके सदाशिव का भजन करूँगा ।। १२ ।।
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कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरस्थमञ्जलिंवहन् । विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेतिमन्त्रमुच्चरन्सदासुखी भवाम्यहम् ॥ १३ ॥
भाषार्थ:- वह कौन-सा कल्याण कारक समय होगा जिस समय मैं सम्पूर्ण दुर्वासनाओं को त्याग कर गंगातट के कुञ्ज के विषय निवास करके शिरपर अंजलि बाँधता हुआ चंचल नेत्र वाली स्त्रियों में रत्नरूप जगज्जननी श्रीपार्वतीजीको भी प्रारब्धवश प्राप्त हुए अर्थात् औरों को परम दुर्लभ शिव-शिव मंत्र का उच्चारण करता हुआ परम आनंदको प्राप्त होऊँगा ॥ १३ ॥ निलिम्पनाथ नागरीकदम्बमौलिमल्लिका निगुम्फनिर्झरक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
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