Book Title: Shiv Mahimna Stotram
Author(s): Thakurprasad Pustak Bhandar
Publisher: Thakurprasad Pustak Bhandar

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * भाषा-टीका-सहितम के २५ निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसुन्दरः कलानिधानबन्धुरः श्रिय जगधुरन्धरः॥८॥ भाषार्थः--अमावस्या की अर्धरात्रि के समय स्वयं अन्धकार अधिक होता है और यदि उस समय नवीन मेघमण्डली घिर आवे तो और भी अधिक अन्धकार हो जाता है ऐसे घोर अन्धकार का भी जिनकी ग्रीवा निरादर करती है अर्थात् उस अन्धकार से मी अधिक काली है ऐसे गङ्गाधर हस्ती के चर्म को ओढ़ने वाले चन्द्रमौलि त्रिलोक के पालन करने वाले सदाशिव हमारी सम्पदा को अधिक कर ॥८॥ प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभावलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् । स्मरच्छिदंपुरच्छिदंभवच्छिदंमखच्छिदंगजच्छिदान्धकच्छिदंतमन्तकच्छिदंभजे ॥९॥ भाषार्थ:--जिनके सुन्दर कण्ठ की परम रमणीय शोभा खिले हुए नील कमल की भाँति चारों ओर फैली हुई नील वर्ण की कान्ति का निरादर करती है ऐसे कामदेव को भस्म करने वाले त्रिपुरारि दक्षयज्ञध्वंसकारी गजासुर संहारी अन्धकासुर के नाशक कालान्तक शिवजी को भजता हूँ ॥९॥ अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरीरसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् । For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34