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* शिवमहिम्नस्तोत्रम् *
तव तत्त्वं न जानामि कीदृशोऽसि महेश्वर । यादृशोऽसि महादेव तादृशाय नमो नमः || ४१ ॥
हे महेश्वर ! मैं नहीं जानता कि, आप कैसे हैं ? आप चाहे जैसे हों आपके लिए मेरा नमस्कार है ||४१ ॥ एककालं द्विकालं वा त्रिकालं यः पठेन्नरः । सर्वपापविनिर्मुक्तः शिवलोके महीयते ॥ ४२ ॥
छूट कर
प्रातःकाल या दोपहर या सायंकाल में या तीनों कालमें जो आपकी महिमा का गान करेगा वह सब पापों से आपके लोक में सुखपूर्वक निवास करेगा ||४२ || इत्येषा वाङ्मयी पूजा श्रीमच्छङ्करपादयोः । अर्पिता तेन देवेशः प्रीयतां मे सदाशिवः ॥ ४३ ॥
इस प्रकार वाङ्मयी पूजा को मैं श्रीशंकरजी के चरणों में अर्पण करता हूँ । जिससे महादेवजी मुझपर प्रसम रहें ||४३||
॥ इति भाषाटीकोपेतं श्री शिवमहिम्नस्तोत्रम् समाप्तम् ।
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