Book Title: Shiv Mahimna Stotram
Author(s): Thakurprasad Pustak Bhandar
Publisher: Thakurprasad Pustak Bhandar

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ भापाटीया-स-हितम * सुरवरमुनिपूज्यं स्वर्गमोक्षकहेतुम् । पठति यदि मनुष्यः प्राञ्जलिर्नान्यचेताः॥ व्रजति शिवसमीपं किन्नरैः स्तूयमानः । स्तवनमिदममोघं पुष्पदन्तप्रणीतम् ॥३८॥ ___ यह पुष्पदन्त का बनाया हुआ अमोघ स्तोत्र कैसा है किसुरवर मुनियों से पूज्य और स्वर्ग तथा मोक्ष का कारण है। इसे जो मनुष्य अनन्य चित्त से हाथ जोड़कर पड़ता है वह किन्नरों द्वारा स्तुति किया शिवजी के समीप जाता है ॥३८॥ श्रीपुष्पदन्तमुखपङ्कजनिगतेन । स्तोत्रेण किल्बिषहरेण हरप्रियेण ॥ कण्ठस्थितेन पाठतेन समाहितेन । सुप्रीणितो भवति भूतपतिर्महेशः ॥३९॥ ___ सावधान होकर श्रीपुष्पदन्त के मुख से निकले हुए पापहारी तथा महादेवजी के प्रिय इस स्तोत्र को कण्ठ कर पाठ करने से प्राणीमात्र के स्वामी श्रीमहादेवजी प्रसन्न होते हैं ॥३९॥ आसमाप्तामदं स्तोत्रं पुण्यं गन्धर्वभाषितम् । अनौपम्यं मनोहारि शिवमीश्वरवर्णनम् ॥४०॥ __ अनुपम और मन को हरनेवाला ईश्वर-वर्णनात्मक पवित्र स्तोत्र पुष्पदन्त गन्धर्व का कहा हुआ समाप्त हुआ ॥४०॥ For Private and Personal Use Only

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