Book Title: Shiv Mahimna Stotram
Author(s): Thakurprasad Pustak Bhandar
Publisher: Thakurprasad Pustak Bhandar

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * भाषा-टीका-सहितम् * अतस्त्वां सम्प्रेक्ष्य ऋतुषु फलदानप्रतिभुवम् श्रुतौ श्रद्धां बद्ध्वा दृढपरिकरः कर्मसु जनः॥२०॥ ___ हे त्रिपुरहर ! आपही को यज्ञका फलका दाता समझकर वेदमें दृढ़ विश्वास कर मनुष्य कर्मों का आरम्भ करते हैं। क्रिया रूप यज्ञ के समाप्त होनेपर आपही फल देनेवाले रहते हैं। आपको आराधना के बिना नष्ट कर्म फलदायक नहीं होता है ॥२०॥ क्रियादक्षो दक्षः क्रतुपतिरधीशस्तनुभृताम् ऋषीणामात्विज्यं शरणद ! सदस्याः सुरगणाः। ऋतुभ्रेषस्त्वत्तः ऋतुफलविधानव्यसनिनो ध्रुवं कर्तुः श्रद्धाविधुरमभिचाराय हि मखाः ॥२१॥ हे शरणद ! कमकुशल यज्ञपति दक्ष के यज्ञके कर्ता ऋषिगण ऋविज, देवता सदस्य थे । फिर मी यज्ञ के फल देनेवाले आप की अप्रसन्नता से वह ध्वंस हो गया। निश्चय है, आप में श्रद्धा रहित किया गया यज्ञ नाश के लिये ही होता है ॥ २१ ॥ प्रजानाथं नाथ ! प्रसभमभिकं स्वां दुहितरम् गतं रोहिद्भतां रिरमयिषुमध्यस्य वपुषा । धनुः पाणेयातं दिवमपि सपत्राकृतममुम् वसन्तं तेऽद्यापि त्यजति न मृगव्याधरभसः ॥२२॥ हे नाथ ! काल से प्रेरित मृगरूप धारण किये ब्रह्माके भय For Private and Personal Use Only

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