Book Title: Shiv Mahimna Stotram
Author(s): Thakurprasad Pustak Bhandar
Publisher: Thakurprasad Pustak Bhandar

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * शिवमहिम्नस्तोत्रम् * जल, आकाश, पृथ्वी और आत्मा भी आपही हैं, किन्तु मेरे विचार से ऐसा कोई स्थान नहीं है कि जहाँ आप न हो ॥२६॥ त्रयी तिस्रो वृत्तिस्त्रिभुवनमथो त्रीनपि सुरानकाराद्यैव स्त्रिभिरभिदधत्तीर्णविकृतिः । तुरीयं ते धाम ध्वनिभिरवस्न्धानमणुभिः समस्तं व्यस्तं त्वां शरणद गृणात्योमिति पदम् ॥२७॥ हे शरणद, व्यस्त ( अ, उ, म् ) 'ॐ' पद शक्ति द्वारा तीन वेद ( ऋक् , यजुः और साम ),तीन वृत्ति (जाग्रत् ,स्वप्न, सुषुप्ति ), त्रिभुवन (भूर्भुवः स्वः ) तथा तीनों देव, (ब्रह्मा, विष्णु, महेश ) इन प्रपञ्चों से व्यस्त आपका बोधक है और समस्त "ॐ' पद समुदाय शक्ति से सर्वविकार रहित अवस्थात्रय से विलक्षण अखण्ड, चैतन्य आपको सूक्ष्म ध्वनि से कहता है ॥२७॥ भवः शवों रुद्रः पशुपतिरथोग्रः सह महांस्तथा भोमेशानाविति यदभिधानाष्टकमिदम् । अमुष्मिन् प्रत्येकं प्रविचरति देव ! श्रुतिरएि प्रियायास्मै धाम्ने प्रणिहितनमस्योऽस्मि भवत।।२८॥ हे देव, भव, शर्व, रूद्र, पशुपति, उग्र, महादेव, भीम और ईशान यह जो आपके नामका अष्टक है, इस प्रत्येक नाममें वेद और देवतागण ( ब्रह्मा ) आदि विहार करते हैं, इसलिए ऐसे For Private and Personal Use Only

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